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नागरीप्रचारिणी पत्रिका अपनी दूतियों को दौड़ा देती है। उन्हीं में से 'पाटला' नाम की एक सहचरी रेवा-तट पर राजा को कुछ खोजती हुई दिखाई देती है और शशिप्रभा का सारा वृत्तांत कह सुनाती है।
छठे सर्ग में 'पाटला' जाकर शशिप्रभा को हार देती है। शशिप्रभा के हृदय में राजा के प्रति अनुराग और दर्शनेच्छा होती है। वह अपनी सहचरी माल्यवतो से सिंधुराज के विषय में अनेक प्रश्न पूछ लेती है-"सख्यः कः सिंधुराजोऽयम् ?" इत्यादि । माल्यवती बतलाती है कि देवि ! यह अवंतीनाथ है। मैंने इसका वैभव उस समय देखा है जिस समय मैं एक पर्व पर भूतभावन भगवान् महाकालेश्वर के दर्शनार्थ गई थी। इसी सर्ग में शशिप्रभा से राजा की भेंट भी हो जाती है। परिमल कवि ने इस अवसर का अत्यंत मनोहारी वर्णन किया है। _____ सप्तम सर्ग में राजा, मंत्री और शशिप्रभा तथा उसकी सहचरी के बीच संवाद हुआ है। शशिप्रभा इंगित से राजा के हृदय पर अपना हार्दिक अनुराग व्यक्त कर देती है।
अष्टम सर्ग में शशिप्रभा का, पातालस्थ नागनगरी भोगवती में ले जाने के लिये, नागों के द्वारा अदृश्य रूप से, हरण हो जाता है। इधर सिंधुराज भी शशिप्रभा के प्रेमाकर्षण से सारस पक्षी का मंत्र प्राप्त कर नदी का उल्लंघन कर जाता है। पार करते ही रेवा (नर्मदा) नदी सशरीर राजा को दर्शन देती है और वर प्रदान करती है। ___ नवम सर्ग में बतलाया गया है कि वांकुश नामक एक दैत्य नाग. जाति का शत्रु था। नाग लोग उसके भय से त्रस्त थे । उसके नाश से नागों का प्रसन्न होना स्वाभाविक था। इसी लिये नागराज ने एक प्रतिज्ञा कर रखी थी कि जो व्यक्ति वाकुश के उद्यान से सुवर्णकमल ले आएगा उसी के साथ 'शशिप्रभा' ब्याही जायगी।
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