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विविध विषय
१८३ उसी का पीछा करता हुआ एक वन से दूसरे में बड़ी दूर निकल जाता है। परंतु मृग को न पाकर वह निराश हो जाता है । आखिर एक बार उसकी दृष्टि पुन: उस भागते हुए मृग पर पड़ जाती है । राजा तुरंत उस पर सुनहले रंग से अपना नामांकित बाण छोड़ देता है। वह बाण मृग के मर्मस्थल को छोड़ चर्म में बिंध जाता है। फिर वह भयग्रस्त मृग जी छोड़कर अलक्षित हो जाता है । सिंधुराज उसकी खोज में दूर निकलता जा रहा है। __ तृतीय सर्ग में राजा मृगानुसंधान में निराश होता है। मार्ग में राजा को हंस द्वारा एक मौक्तिक-माला प्राप्त होती है। हंस किसी की माला उठा लाया हो यह जानकर वह उसे देखता है। उस माला की रचना माला के स्वामी के नाम पर देखकर 'प्रक्षरतति' से जान लेता है कि यह किसी 'शशिप्रमा' नामक रमणी का कंठाभरण है। अब मृगानुसंधान से हटकर उसकी मनोवृत्ति में 'शशिप्रभा' की जिज्ञासा जागरित हो जाती है। वह 'शशिप्रभा' की खोज में चल पड़ता है।
चतुर्थ सर्ग में राजा एक तरुणो को कुछ खोजती हुई देखता है। वह तरुणी सारा वृत्तांत राजा से कह देतो है। उसकी अपनी आशा पल्लवित हो जाती है ।
पंचम सर्ग के प्रारंभ में नागराजकन्या शशिप्रभा का परिचय दिया है। इसके बाद वह अपने पालित 'हरिण' को शर-विद्ध देखती है। उस 'शर' को निकालकर देखती है तो उस पर 'सिंधुराज' का नाम अंकित मिलता है। शशिप्रभा को भी उत्कंठा होती है कि यह 'सिंधुराज' कौन है। इस अवस्था में उसकी मुक्कामाला गिर जाती है और हंस उसे चोंच में दबाकर ले भागता है। यही मुक्कामाला सिंधुराज के हाथ पड़ती है। जब शशिप्रभा को माला के खो जाने का स्मरण हो आता है तब वह उसे खोजने के लिये चारों ओर
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