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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
उज्जयिनी पुरी का वैभवपूर्ण वर्णन किया गया है । उज्जयिनी के विशेषता - वर्णन में पूरे ४० पद्य लिखे गए हैं, जिनका प्रारंभ इस प्रकार है----
“श्रस्ति हितावुज्जयिनीतिनाम्ना पुरी विहायस्यमरावतीव । ददर्श यस्यां पदमिंद्रकल्पः श्रीविक्रमादित्य इति चितीशः ॥ १७ ॥ भ्रामन्जुगुञ्जत्कलहंसपंक्तिर्विकस्वराम्भोजरजः । रजः पिशङ्गा ॥ श्राभाति यस्याः परिखा नितम्बे सशब्दजाम्बूनदमेखलेव ॥ १८ ॥ इस प्रकार एक से एक सुंदर, सरस और काव्य-रस- स्रावी पद्य-रत्न हैं । मागे चलकर कवि काव्य नायक का, निम्न लिखित रूप में, परिचय देता है
"राजास्ति तस्यां सकुलाचलेन्द्र निकुंजविश्रान्तयशस्तरङ्गः ।
भास्वान् ग्रहाणामिव भूपतीनां श्रवाप्तसंख्यो भुवि सिन्धुराजः ॥ १८ ॥ निव्यू ढनानाद्भुत साहसञ्च रणे वृतञ्च स्वयमेव लक्ष्म्या । नाम्ना यमेके- 'नवसाहसाङ्क', कुमारनारायणमाहुरन्ये ॥
उक्त पद से ज्ञात होता है कि सिंधुराज का मुख्य नाम 'कुमार नारायण' था । कवि ने अनेक पद्य में बहुत बढ़ा-चढ़ाकर सिंधुराज की प्रशंसा की है। सिंधुराज के मुँह में प्रन्यान्य गुणों के साथ केवल 'सत्य' और 'सरस्वती' का ही वास होना बतलाया है—
"चित्रं, प्रसादश्च मनस्विता च भुजं, प्रतापश्च, वसुन्धरा च । अध्यासते यस्य मुखारविन्द ं, द्व े - एव, 'सत्यं' च 'सरस्वती' च ॥ ६४ ॥ द्वितीय सर्ग में सिंधुराज मृगया के लिये निकलता है । उसकी दृष्टि मार्ग में एक बड़े सुंदर पालतू हरिया पर पड़ जाती है । अथेन्द्रचापलक्षितं सङ्घरंतमितस्ततः ।
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अमन्दमृगयासङ्गः स कुरङ्गमलेाकत ॥ ३४ ॥
यह समझते ही कि 'मैं देख लिया गया हूँ' मृग तुरंत वहीं, विंध्य के लता-कुंज में, प्रवेश कर जाता है । राजा भी घोड़े से उतरकर
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