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विविध विषय
१८१ कह पाए हैं कि यह काव्य १८ सों में विभक्त है। लगभग १८ प्रकार के विभिन्न छंदों में पद्य-रचना की गई है, १८ सर्ग में कुल मिलाकर श्लोक-संख्या १५२५ है। काव्य के निर्माण में 'वैदर्भी'रीति का आश्रय ग्रहण किया गया है। जैन लेखकों का कथन है कि पद्मगुप्त जैन था। परंतु काव्यारंभ में शिव, गणेश और सरस्वती की स्तुति की गई है। आगे काव्य के १८ सर्ग में हाटकेश्वरस्तुति में ८ सुंदर पद्यों की रचना की गई है, जिनको देखते हुए कवि 'शैव' प्रतीत होता है। ___ ऐसा पता चलता है कि 'नवसाहसांक-चरित' नामक श्रीहर्ष का भी एक काव्य है; परंतु वह उपलब्ध नहीं है। परिमल (पद्मगुप्त) ने और ग्रंथों की भी रचना की है, पर उन ग्रंथों का पता नहीं चलता। महाकवि क्षेमेंद्र ने परिमल-कृत अनेक श्लोकों को औचित्यालंकार के उदाहरण में उद्ध त किया है। नवसाहसांक में ये श्लोक नहीं हैं। उन श्लोकों में तैलप और मूलराज के आक्रमण का विवरण है। कुछ इतिहासवेत्ताओं का मत है कि 'तैलप' और 'परिमल' समकालीन ही हैं। परिमल ने 'नवसाहसांक' में भत मेंठ, गुणाढ्य, बाण आदि कवियों का भी उल्लेख किया है।
'नवसाहसांक-चरित' पुस्तक की एक प्राचीन प्रति लंदन की रॉयल एशियाटिक सोसायटी में सुरक्षित है, दूसरी तंजार के प्राचीन पुस्तक-संग्रहालय में। इस समय हमारे सामने गवर्नमेंट ओरियंटल बुकडिपो बंबई द्वारा सन् १८६५ को प्रकाशित प्रति है।
'नवसाहसांक-चरित' के प्रथम सर्ग को शिव-गणेश की स्तुति से प्रारंभ किया गया है। प्राचीन कवि-प्रशस्ति के पश्चात्
(१) तंजोर के संस्कृत के प्राचीन पुस्तकालय में जो ( नवसाहसांकचरित) पुस्तक उपलब्ध है उसमें परिमल का द्वितीय नाम 'कालिदास' बतलाया गया है।
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