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विविध विषय कवि था। वाक्पतिराज बड़ा ही विद्याव्यसनी रहा है। पंडितों ने उसके अभाव में कहा है कि “गते मुंजे यशःपुंजे निरालंबा सरस्वती"। वाक्पतिराज मुंज स्वयं उत्कृष्ट कवि और विविधागम-निष्णात था', वाक्पतिराज के पश्चात् राज्य का उत्तराधिकारी सिंधुराज हुआ। सिंधुराज वाक्पतिराज का बंधु था और विख्यात सरस्वती-कंठाभरण महाराजा भोज का जनक था । ___ कहा जाता है कि श्रीहर्षदेव द्वितीय 'सीयक' को कोई पुत्र नहीं था। मुंज-वन में मृगया के समय अकस्मात् जो सुंदर बालक प्राप्त हुआ था और जो 'मुंज' नाम से विख्यात हुअा उसी को अपना राज्याधिकारी बनाया था। मुंज के पश्चात् जो औरस संतान उत्पन्न हुई, वही 'सिंधुराज' है। कहते हैं कि सिंधुराज से मुंज ने भोज को दत्तक ले लिया; परंतु 'नवसाहसांक-चरित' में इसका कहीं उल्लेख नहीं है।
सिंधुराज ने हू!३, दक्षिण कोशलों और बाग्जड़, लाट तथा मुरलवालों को जीता था । सिंधुराज को 'नवसाहसांक' की उपाधि थी। इसके अतिरिक्त उसे मालवेश, अवंतीपति और 'सिंधुल' भी कहते थे।
(१) वाक्पतिराज मुंज के दो ताम्रशासन अभी प्राप्त हुए हैं जो १०३८ संवत् के हैं। दो शिलालेख भी सं० १०१६ और १०२१ के मिले हैं।
-इंडियन ऐंटिक्वेरी, १९१२, पृष्ठ २०१ । "कविवाक्पतिराजश्रीभवभूत्यादिसेवितः ॥ १४४ ॥"
-राजतरंगिणी, ४ तरंग । (२) मेरुतुंग सूरि ने 'प्रबंध-चिंतामणि' में श्रीहर्षदेव को संतानाभाव लिखा है। पहले 'मुंज'-प्राप्ति और पश्चात् 'सिंधुराज' का होना बतलाया है।
(३) एपिग्राफिका इंडिका, भा० १, पृ० २३५ । । (४) नवसाहसांक-चरित, सग १०, श्लोक १५-१६ ।
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