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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
जातियों अथवा गोत्रों का उल्लेख मिलता है । कुरुवंश का पूर्वज संवरण का पिता 'ऋत' था ।
ब्राह्मणों के सदृश क्षत्रियों के भी तीन प्रधान गोत्र - ( १ ) काश्यप, (२) गार्ग और (३) बातसस् - इसी प्रकार के हैं । करण जाति-जो प्राधुनिक कायस्थ जाति है— के मुख्य गोत्र भी भारद्वाज, पाराशर, नागस और शंखस हैं । परंतु काश्यप गोत्रीय क्षत्रिय कच्छप को, गार्ग- गोत्रीय गार्गी पक्षी को और बावस- गोत्रीय वत्स ( बछड़े को) उसी प्रकार पूज्य दृष्टि से देखते हैं जिस प्रकार ब्राह्मण लोग अपने गोत्रों से संबंद्ध पशु-पक्षियों अथवा प्रकृति-पदार्थों को देखते हैं । इसी प्रकार भारद्वाज गोत्रीय 'करण' लोग भारद्वाज ऋषि और पक्षी की, पाराशर गोत्रीय पाराशर ऋषि और कपोत की, नागसगोत्रीय नाग की और शंखस-गोत्रीय शंख की उपासना करते हैं । नागस-गोत्रीय 'करण' लोग सपों के मारने अथवा सताने को वर्जित समझते हैं तथा सर्पों का राजा 'अनंत' उनका इष्ट देवता है ।
गजस्, नागस्, काश्यप और साल इन गोत्रों के शूद्र गज, नाग, कच्छप और साल मछली को मारते, छेड़ते अथवा दुःख नहीं देते हैं । कहा जाता है, कुछ तो जब इन्हें देखते हैं इनको नमस्कार करते हैं 1 ये लोग इन पशु-पक्षियों को अपना इष्ट देवता समझते हैं ।
वस्तुतः हमारा जाति-विज्ञान बड़ा जटिल है। हिंदुओं में अनेक कारणों से अनेक जातियों का प्रादुर्भाव हुआ । जटिल धार्मिकग्रंथियों के कारण जाति- समस्या एवं विज्ञान भी जटिल है ।
वृंदावनदास
(५) 'नवसाहसांक- चरित' - परिचय
पद्मगुप्त (उर्फ परिमल) कवि, धारा नगरी के विख्यात सरस्वतीसमाराधक महाराजा वाक्पतिराज मुंज की विद्वत्सभा का यशस्वी
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