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विविध विषय
१७७ यही कारण है कि इन पशु-पक्षियों को आज तक बहुत से ब्राह्मण सम्मान की दृष्टि से देखते हैं।
मिस्टर रिज़ले (Mr. Risley) अपने Tribes and Castes of Bengal शीर्षक ग्रंथ में (पृष्ठ १६१ में) लिखते हैं-"द्रविड़ अथवा अर्द्ध-द्रविड़ लोगों में प्रचलित यह विश्वास कि जन-समूह की उत्पत्ति पशु-पक्षियों अथवा प्रकृति-पदार्थों से है', बहुत काल पीछे उड़ीसा के ब्राह्मणों में भी पाया जाता है। इस प्रकार बातसगोत्रीय ब्राह्मण वत्स अर्थात् बछड़े को अपना पूर्वज समझकर पूजते हैं। भारद्वाज-गोत्रीय ब्राह्मण इस नाम के ऋषि से नहीं वरन् इस नाम के पक्षी से अपनी उत्पत्ति का पता लगाते हैं। इसी प्रकार प्रात्रेय-गोत्रीय ब्राह्मण हरिण की उपासना करते हैं और उसका मांस भक्षण नहीं करते। सम्मानार्थ वे मृगचर्म पर भी नहीं बैठते हैं। कौछस कछुए और कौडिन्य चीते से अपनी सृष्टि मानते हैं और इसी कारण कौडिन्य सिंहचर्म पर आसीन नहीं होते। अनुमानतः इन विश्वासों के तीन कारण हैं-(१) प्राचीन
आर्य-विचारों एवं विश्वासों का पुनर्जागरण; (२) प्राए हुए ब्राह्मणों द्वारा द्रविड़ विश्वासों का अपनाया जाना; (३) संभवतः उड़िया ब्राह्मण द्रविड़ों के ही वंशधर हो।"
परंतु रायबहादुर शरत्चंद्र राय का मत है कि द्रविड़ों के कतिपय सिद्धांतों और विश्वासों के सादृश्य से उड़िया ब्राह्मण द्रविड़ों के वंशधर कदापि नहीं हो सकते। वे यह भी कहते हैं कि उच्च संस्कृति-युक्त जातियों ने ही अपने सिद्धांतों में हीन संस्कृतिवाली जातियों से सदैव कुछ न कुछ समावेश किया है और इस बात का प्रमाण समस्त भारतवर्ष का इतिहास देता है। उनका कहना है कि ऋग्वेद में भी मत्स्य, गौतम, वत्स्य, शुनक, कौशिक, मंडूक आदि
(1) इस 'विश्वास' के लिये अंगरेजी शब्द totemistic belief है।
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