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________________ १७६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका शांडिल्य आदि अनेक ब्राह्मण-गोत्र क्रमश: इन्हीं ऋषियों के नाम से उत्पन्न हुए बतलाए जाते हैं। परंतु उपर्युक्त सब नामों का सादृश्य इन्हीं नामवाले पशु-पक्षियों और प्राकृतिक वस्तुओं से भी है। भारद्वाज नीलकंठ के लिए, पाराशर कपोत के लिये, बाछस बच्छे अथवा बछड़े के लिये, गौतम गाय के लिये, कृष्णपात्रेय काले हरिण के लिये, लोहित्यान अग्नि के लिये, मुद्गल अँगूठी के लिये, दल्लभ्य बंदर के लिये, कौशिक उलूक के लिये, भार्गव एक प्रकार के वृक्ष के लिये, कौडिन्य चीते के लिये, अगस्त्य पात्र के लिये, मैत्रेय मंडूक के लिये और शांडिल्य साँड़ के लिये प्रयुक्त किया गया है। उड़ीसा में उपर्युक्त गात्रों के ब्राह्मण इन पशु-पक्षियों अथवा प्रकृति-पदार्थों को पवित्र मानते हैं और विशेष तीज-त्यौहारों पर इनकी मानता मानते हैं। कहते है कि गोत्रों के नाम पशु-पक्षियों अथवा प्राकृतिक पदार्थों पर होने का एक कारण है। उड़िया ब्राह्मण इस कारण को एक कथा के रूप में वर्णित करते हैं जो अत्यंत मनोरंजक है। शिवजी के श्वशुर दक्ष प्रजापति ने एक बड़ा यज्ञ किया जिसमें उन्होंने शिवजी के अतिरिक्त सब ऋषियों को आमंत्रित किया। निमंत्रण न माने पर भी सती ने पितृ-यज्ञ में सम्मिलित होने के लिये शिवजी से बहुत आग्रह किया। अत: शिवजी ने सती को अपने पिता के यज्ञ में सम्मिलित होने के लिये प्राज्ञा प्रदान कर दी। परंतु सती को यज्ञ में पहुँचकर बहुत दुःख हुआ। उसके पिता ने उसके सम्मुख शिवजी को खूब कोसा और उनके प्रति प्रति अपमानसूचक शब्द कहे। सती अपने पति की निंदा सहन न कर सकी और उसने प्राण त्याग दिए। जब शिवजी को सब वृत्तात विदित हुआ तब वे अति रुद्र रूप धारणकर यज्ञस्थ सब देवताओं का संहार करने को उद्यत हुए। उस समय सब देवता तथा ऋषिगण वहाँ से पशु-पक्षियों के रूप में. उड़ गए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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