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________________ विविध विषय १७५ कवि ऊमरदानजी आशुकवि थे। राजस्थानी भाषा पर इनका पूर्ण अधिकार था और इनकी कविता का सरल प्रवाह श्रवणीय तथा पठनीय है। लोकोक्तियों के समावेश से कविता में सरसता प्रा गई है। प्रसादगुण तथा सरल अभिव्यंजना के कारण यह ग्रंथ चित्ताकर्षक हो उठा है। इसी से इसका राजपूताने में बहुत प्रचार है और इसे छोटे-बड़े सभी चाव से पढ़ते हैं। उमरदानजी विनोद प्रिय सुकवि थे तथा उनकी कविता में हास्यरस का भरपूर पुट है। वास्तव में ये डिंगल भाषा के श्रेष्ठ कवि हो गए हैं। इस ग्रंथ का संपादन श्री जगदीशसिंह गहलोत ने. अत्यंत सुचारु रूप से, किया है। इनकी यथेष्ट पाद-टिप्पणियों से कविता का भाव स्पष्ट हो जाता है तथा जिन स्थानों, ऐतिहासिक पौराणिक घटनाओं या व्यक्तियों का उल्लेख हुमा है उनके विषय में पूर्ण जानकारी भी हो जाती है। आपका यह परिश्रम सर्वथा प्रशंसनीय है। यह पुस्तक प्रत्येक हिंदी-प्रेमी के लिये संग्रहणीय है। व्रजरनदास ( ४ ) हिंदू जाति-विज्ञान में पशु-पक्षियों एवं प्राकृतिक वस्तुओं का महत्त्व हिंदुओं की अनेकानेक जातियों की व्युत्पत्ति के विषय में पशुपक्षी और प्राकृतिक वस्तुएँ अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। चारों वर्णो के गोत्रों के नाम ऋषियों से मिलते हैं और कहा जाता है कि इन गोत्रों की उत्पत्ति उन्हीं ऋषियों से हुई। भारद्वाज पाराशर, कौत्स, आत्रेय, गौतम, कौडिन्य, वाशि , जामदग्नि, काश्यप, कृष्णात्रेय, गार्गीयस, बाछस, लोहित्यान, मुद्गल. दल्लभ्य, सौनिल्य, भार्गव, वत्स अथवा वतस, अगस्त्य, मैत्रायण और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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