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________________ १७३ विविध विषय और अमर मार्कडेय । श्रीकृष्णचंद्राभ्युदय कवि के स्वर्गवास के कुछ काल के पश्चात, महामहोपाध्याय श्री हाथीभाईजी शास्त्री की टीका सहित, छपा और अमर मार्कडेय नाटक गुजराती टीका सहित इसी १६३३ ई० में, श्री लीमडीनरेश की उदार कृपा तथा महामहोपाध्याय हाथीभाईजी शास्त्री के सस्नेह परिश्रम से, लोकलोचन-गोचर हुआ है। शंकरलालजी स्वाभाविक कवि थे। ये पुराण, काव्य, दर्शन आदि नाना शास्त्रों के प्रगाढ़ पंडित थे। इनकी रचनाएँ सरल, सरस एवं सदुपदेशपूर्णे हैं। इनके रचे हुए नाटकों को स्त्रियाँ तथा पुरुष समान रूप से बिना संकोच के पढ़ सकते हैं। ये विष्णु और शिव के अभेद रूप से उपासक थे। __ अमर मार्कडेय में पांच अंक हैं। प्रथम अंक में दिखाया है कि संतान न होने से खिन्न विशालाक्षी अपने पति मृकंड मुनि के प्रति प्रसंतोष प्रकट करती है जिसके कारण मुनि सर्वस्व दान कर निर्जन वन में तप करने जाते हैं। दूसरे अंक में बतलाया है कि भगवान् कृष्ण रासलीला प्रारंभ करते हैं और उस प्रसंग में निमंत्रित किए हुए भगवान शंकर समय पर नहीं आते हैं अत: नारदजी उन्हें बुलाने को जाते हैं, परंतु वे ऐसे समय पर पहुँचते हैं जब शंकरजी का मन मृकंड की तपस्या से खिंचा जाता है। तीसरे अंक में यह बताया है कि नारद द्वारा मुनि को वर मिलता है, परंतु इस शर्त के साथ कि मूर्ख पुत्र लेना स्वीकार हो तो दीर्घायु और सर्वज्ञ पुत्र चाहो तो स्वल्पायु मिलेगा। दंपति सर्वज्ञ पुत्र प्राप्त करना अच्छा समझते हैं। "तथास्तु" कहकर नारद वृंदावन चले जाते हैं। वहाँ पर वे रासलीला के विषय में कुछ ऐसी शंकाएँ उठाते हैं जिनका समाधान कवि ने अत्यंत सुंदर शैली से करके कृष्ण के प्रति परस्त्रीगमन दोष की शंका को समूल नष्ट कर दिया है। चतुर्थ अंक में मृकंड के पुत्र मार्कडेय का उपनयनपूर्वक उपमन्यु के पास विद्याध्ययन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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