________________
१७२
नागरीप्रचारिणी पत्रिका भी संदेह किया गया है, क्योंकि इन कारिकाओं का प्रमाण कई आदि माध्यमिक बौद्ध लेखकों ने दिया है जिनका काल अष्टम शताब्दी नहीं हो सकता। डा. वेलेसर इन कारिकाओं का समय लगभग ५५० स० ई० अनुमान करते हैं। इनकी राय में गौडपाद एक लेखक का नाम न होकर एक संप्रदाय का है। प्रो० बेल्वलकर और रानडे भी इस राय में शामिल हैं। पर मि. व्यंकटसुब्बैया का मत है कि गौडपाद नाम के आचार्य अवश्य हुए हैं जिन्होंने अद्वैतवाद को इस मांडूक्य उपनिषद् में सिद्ध किया है और उस वाद का पूर्ण रूप बनाया है।
पंड्या बैजनाथ
(२) महामहोपाध्याय महाकवि श्री शंकरलाल
निर्मित “अमर मार्क डेय" नाटक पिछले सौ वर्षों में संस्कृत भाषा में नवीन ग्रंथ रचनेवाले विद्वानों में काठियावाड़ के विद्वद्रन पंडित शंकरलाल अति गौरवारूढ़ हो चुके हैं। इनका जन्म मंगलवार प्राषाढ़ वदि ४ वि० सं० १८६६
और स्वर्गवास आषाढ़ सुदि १५ वि० सं० १९७५ में हुआ। ये जामनगर के पंडित झंडू वैद्य के कुटुंबी थे। इनके पिता महेश्वर भट्ट ने इनका उपनयन संस्कार कराकर प्राचीन परिपाटी के अनु. सार संस्कृत भाषा का अध्ययन प्रारंभ कराया। इन्होंने विशेष रूप से सुप्रसिद्ध देवज्ञशिरोमणि केशवजी मुरारजी से परिश्रम-पूर्वक विविध शास्त्र पढ़े। तदनंतर कई एक महत्त्वपूर्ण छोटे छोटे लेखों के अतिरिक्त इन ग्रंथो की रचना की-सावित्री-चरित, चंद्रप्रभाचरित, अनसूयाभ्युदय, सेव्यसेवक-धर्म, लघुकौमुदीप्रयोग-मणिमाला, अध्यात्मरत्नावली, बालाचरित, विपन्मित्रं पत्रम्, श्रीकृष्णचंद्राभ्युदय
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com