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नागरीप्रचारिणी पत्रिका ऋषि सिंधु नदी के किनारे पर ठहरे थे जहाँ ऋषियों ने जाकर उनसे शुद्धि के प्रश्न किये थे।
आपका मत है कि देवल-स्मृति का समय दसवीं शताब्दी का आरंभ था। स्मृति के म्लेच्छों से आप मुस्लिम-धर्मावलंबियों का अर्थ निकालते हैं क्योंकि ये लोग उस समय भारत की सीमा पर
आ गए थे। स्मृति में सिंधु ( Monsuhra ) और सौवीर (मुलतान ) सीमाप्रांतों का उल्लेख है जहाँ जाने से हिंदू को लौटने पर शुद्धि करनी पड़ती थी। ये प्रांत ६४३ ई० में मुसलमान लोगों के अधिकार में आ गए थे।
स्मृति में जो सिंधु का उल्लेख है वह पंजाब की सिंधु नदी का है क्योंकि वहाँ पर हिंदू बलात्कार से मुसलमान बनाए जाते थे । सिंथ प्रदेश इसके बहुत पूर्व से मुसलमानों के अधिकार में आ गया था । इस स्मृति की शुद्धि एक-दो मनुष्यों के लिये ही नहीं थी; वरन् यह उनके हेतु नियत की गई थी जहाँ सारे गाँव के गाँव शुद्ध किए जाते थे। आपका मत है कि सन् ईसवी के प्रारंभ से और उसके पूर्व से लगाकर दसवीं शताब्दी तक बराबर शुद्धि होती रही ।
दिसंबर १६३३ के जरनल आफ इंडियन हिस्टरी में डा० एस० एन० प्रधान का एक लेख है जिसमें उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि जनमेजय ने वाजसनेय याज्ञवल्क्य और उनके शिष्य वाजसनेयी लोगों को अपने दो अश्वमेध यनों में पुरोहित नियत किया। इस कारण वैशंपायन ने राजा और पुरोहित दोनो को शाप दिया। पर जनमेजय ने, वाजसनेय याज्ञवल्क्य के नियमानुसार दो अश्वमेध यज्ञ करके, शुक्ल यजुर्वेद को प्रचलित कर ही दिया। इस पर विपक्ष के ब्राह्मण राजा से क्रुद्ध हो गए और उसके विपरीत उन्होंने बगावत का झंडा खड़ा कर दिया जिसके कारण जनमेजय का अधिकार उसके तीन सीमांत-प्रांतो से उठ गया।
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