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(४) विविध विषय
(१) पुरातत्त्व सेप्टेंबर १९३३ के इंडियन ऐंटिक्वेरी में श्रीमान् के० पी० जायसवाल ने, अशोक के "जंबू द्वीप' पर, एक लेख लिखा है। महाभारत के समय में जंबू द्वीप से प्रायः सारे एशियाखंड का अर्थ लिया जाता था। निषध और मेरु इसके मध्यस्थ और परस्पर निकटस्थ पर्वत थे। पुराणों का मेरु और सिकंदर के साथी इतिहास-लेखकों के मेरस एक ही पर्वत के नाम थे। जंबूवृक्ष से शायद आलू बुखारे के वृक्ष (Plum-tree) का अर्थ है, जो इस प्रदेश का विशेष वृक्ष है। मेरु के दक्षिण और निषध के उत्तर में एक नदी का वर्णन है जो बहुत करके पंजशीर ( Panjshir ) नदी है। जंबू द्वीप का मध्यभाग मेरु देश है । महामेरु उसकी श्रेणी है । तिब्बत का नाम किन्नरी देश या किंपुरुषवर्ष था क्योंकि वहाँ के निवासियों में मूछों का प्रभाव रहता है। उत्तर कुरु से पुराणों में साइबीरिया का देश लिया गया है। भद्राश्व से चोन और केतुमाल से एशिया माइनर का देश माना जाता था--ऐसी आपकी राय है। केतुमाल का पश्चिमीय नगर रोमक अर्थात् कुस्तुंतुनिया ( Constantinople ) था। ___ अक्टूबर १९३३ ई० के कलकत्ता रिव्यू में प्रोफेसर डो० आर० भांडारकर "क्या हिंदू धर्म में पुन:प्रवेश ( reconversion ) या 'शुद्धि हो सकती है", इस शोर्षक का एक लेख लिखते हैं। देवलस्मृति, अत्रि-संहिता, अत्रि-स्मृति, बृहद्यन-स्मृति आदि में शुद्धि का विधान है और पार्योपदेशक पंडित जे० पी० चौधरी ने इन आधारों को एक पुस्तक में संग्रह करके १९३० में अलग छपा भी दिया है। लेखक महाशय विशेषकर देवल-स्मृति का उल्लेख करते हैं। देवल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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