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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
भोज्य सामग्री चुक जाने पर उसने जयपुरवालों को बिना शर्त किल्ला समर्पण करने को लिखा । उस समय जयपुर की गद्दी पर सवाई माधवसिंहजी थे । माधवसिंहजी ने तुरंत सहायता भेजी और दुर्ग हस्तगत किया, जिस पर मरहठे चढ़ आए। इस समय माचाड़ी के महाराव राजा प्रतापसिंहजी की वीरता और बुद्धिमानी ने बड़ा काम किया । संवत् १८१६ वि० में मरहठे, जयपुर की सेना को देख, घेरा उठाकर चल दिए । किला जयपुरवालों के अधिकार में आया । तब से यह ऐतिहासिक प्रसिद्ध प्राचीन और सुदृढ़ दुर्ग जयपुर - महाराज के अधिकार में चला आ रहा है ।
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