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________________ १६६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका कार करने की विशेष अभिलाषा थी। उसने सेना सहित स्वयं इस विकट किले को जा घेरा। वीर तेजस्वी सुर्जन ने अपने असीम और अमानुषी पराक्रम से मुगल बादशाह की अगणित सेना का आक्रमण तुच्छ कर दिया। यद्यपि अकबर ने इस अभेद्य किले की दीवारों को ध्वंस करने में कोई कसर न की, पर केवल दीवारों के वंस होने ही से किला हाथ मा जाय ऐसी बात न थी। वहाँ तो पहाड़ों के तीन परकोटों के भीतर ७, ८ सौ फुट ऊँची दीवार खड़े पहाड़ की थी। इतने पर भी वह किला वीर हाड़ाओं से संरक्षित था। कुछ दिनों तक चेष्टा कर अकबर हतोद्योग हो गया। तब उसने आमेर के राजा भगवानदास और उनके कुँअर मानसिंह से कहा कि क्या उपाय करूँ। यदि एक बार किले को देख भी लेता तो अच्छा होता। तब मानसिंह ने कहा-दिखा तो हम सकते हैं, पर प्रापको वेश बदलकर चलना होगा। बादशाह ने इसे स्वीकार किया। कुंअर मानसिंह ने राव सुर्जन से आतिथ्य की याचना की, जो राजपूत-रीत्यनुसार स्वीकृत हुई। मानसिंह गढ़ में बुलाए गए । उनके साथ अकबर एक साधारण सेवक के वेश में गया । मानसिंह ने किले में पहुँचकर जिस समय राव सुर्जन के साथ बातचीत की उसी समय राव के काका भीमजी ने कपटवेषधारी अकबर को पहचान लिया और उसके हाथ से बलम छीन लिया। अकबर के होश उड़ गए। उसने राव से कहा-अब क्या होगा? राजा मानसिंह ने राव को समझा-बुझाकर अकबर से मेल करा दिया । अकबर ने रणथंभौर लेकर उसके बदले में ५२ परगने राव सुर्जनजी को दिए-२६ परगने बूंदी के पास और २६ चुनार, काशी प्रादि पूरब देश में। अकबर ने १० शर्तों पर हस्ताक्षर किए जिनके (१) दे. "बूंदी का सुलहनामा", नागरी-प्रचारिणी पत्रिका, माग ७. संख्या २: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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