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नागरीप्रचारिणो पत्रिका
श्री संप्रदाय में दीक्षित करने के लिये वे जीवित न रह सके । रामानुज को केवल उनके शव का दर्शन हुआ ।
श्री वैष्णव संप्रदाय की आधार शिक्षा विशिष्टाद्वैत को, जिसे नाथमुनि ने तैयार किया था, रामानुज ने दृढ़ रूप से आरोपित कर दिया । वेदांत सूत्र पर उनका श्रीभाष्य बहुत प्रसिद्ध हुआ । गीता और उपनिषदों के भी उन्होंने विशिष्टाद्वैती भाष्य किए। इन भाष्यों में उन्होंने शंकर के मायावाद का खंडन किया और माया को ब्रह्म में निहित मानकर उसमें गुणों का आरोप कर लिया जिससे तत्र रूप से भी भक्ति के लिये दृढ़ आधार निकल आया । यदि ब्रह्म में ही गुणों का अभाव है, वह तत्त्वतः करुणावरुणालय नहीं है तो ईश्वर ही में गुणों का आरोप कहाँ से हो सकता है; भक्त का उद्धार ही कैसे हो सकता है ? शंकर के रूखे अद्वैतवाद से ऊबे हुए लोगों को • यह विचारधारा अत्यंत आकर्षक प्रतीत हुई। बड़े बड़े प्रतिवादियों को शाखार्थ में रामानुज के आगे सिर झुकाना पड़ा, नृपतिगण उनके शिष्य होने लगे, उन्होंने बीसियों मंदिर बनवाए और शीघ्र ही उनके भक्तिमूलक सिद्धांतों का जन-समाज में प्रचलन हो गया ।
यादवाचल पर नारायण की मूर्ति की स्थापना के साथ रामानुज ने भक्ति की जिस धारा की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया वह समय पाकर देश को एक ओर से दूसरे छोर तक प्लावित करती हुई बहने लगी । उन्नतमनाओं का एक समूह, जिनके हृदय में परमात्मा की दिव्य ज्योति अपनी पूर्ण आभा से जगमगा रही थी, इस प्लावन के विशेष करण हुए ।
रामानुज का समय बारहवीं शताब्दी माना जाता है । रामानुज ही के समय में निंबार्क ने अपने भेदाभेद के सिद्धांत को लेकर वैष्णवमत की पुष्टि की। निंबार्क भागवत - कुल में उत्पन्न हुए थे उन्होंने राधाकृष्ण की उपासना को प्राधान्य दिया और वृंदावन
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