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________________ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय व्याप्त था। इन पाळवार संतों ने सीधी-सादी तामिल भाषा की कवितामो में अपने हृदय के स्वाभाविक उद्गारों को प्रकट किया है। अंतिम प्रसिद्ध प्राळवार शगोप अथवा नम्माळवार था जिसके शिष्य नाथमुनि ने प्राळवारों की चार हजार कविताओं का एक वृहत् संग्रह प्रस्तुत किया था। इस संग्रह का तामिल में वेदतुल्य प्रादर है। __ नाथमुनि से प्राटवारी की शाखा समाप्त हो जाती है और प्रसिद्ध प्राचार्यों की शाखा प्रारंभ होती है। प्राळवार प्राय: नीची जातियों के होते थे परंतु ये वैष्णव प्राचार्यगण उच्च ब्राह्मण कुल के थे। नाथमुनि (वि० सं० १०४२-१०८५; सम् ६८५-१०३० ई०) परम कृष्णभक्त थे। कृष्ण के जन्म-संबंधी समस्त स्थानों के उन्होंने दर्शन किए थे। मथुरा वृंदावन द्वारका प्रादि स्थानों की यात्रा करके जब वे लौटे तो अपने नवजात पौत्र का उन्होंने यमुना-तट-विहारी की यादगार में यामुन नाम रखा। यामुनाचार्य अपने पितामह से भी बड़ा पंडित हुआ। वह चोलराज का पुरोहित था। राजा ने एक बार सांप्रदायिक शास्त्रार्थ में अपना राज्य ही दाँव पर रख दिया था। उस अवसर पर विजय प्राप्त कर यामुन ने अपने स्वामी की मान रखी थी। पितामह के मरने पर यामुन संन्यासी हो गया और बड़े उत्साह से वैष्णव धर्म का प्रचार करने लगा। परंतु वैष्णव धर्म को व्यवस्थित करने में इन दोनों से अधिक सफलता रामानुज को हुई जो बाद को मामानुसार लक्ष्मण और शेषनाग के अवतार माने जाने लगे। रामानुज भी दूसरी शाखा से नाथमुनि के प्रपात्र थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा शांकर प्रद्वैत के प्राचार्य यादवप्रकाश के यहाँ हुई थी। अद्वैतवाद उनके मनोनुकूल न था, इसलिये यादवप्रकाश से उनकी निभी नहीं। यामुनाचार्य ने उन्हें अपने पास बुलाया परंतु उन्हें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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