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नागरीप्रचारिणो पत्रिका
वर्षों तक लड़ाई हुई। संवत् १३५७ में बादशाह को परास्त होकर हटना पड़ा । वह एक बार दिल्ली लौट गया और फिर संवत् १३५८ में सजकर आया । खूब लड़ाई हुई । राव हम्मीर अपनी रानियों को किले में रक्षित रख और यह समझाकर रण में चला कि जब तक हमारे निशान का झंडा दिखाई पड़ता रहे तब तक हमें जीवित समझना, पीछे अपने धर्म की रक्षा करना, क्योंकि मुसलमान प्राय: स्त्रियों के सतीत्व को नष्ट करते हैं और दुष्ट अलाउद्दीन ने ता रमणियों का सतीत्व नष्ट करने का बीड़ा उठा रखा है । यह कहकर राव केसरिया बाना पहन मुसलमानी सेना पर टूट पड़ा । कई पहाड़ों की घनघोर लड़ाई में मुसलमानों के पैर उखड़े और वे पीठ दिखाकर भागे । राव की फौज ने कोसों तक पीछा किया राव संग्राम में विजय प्राप्त कर धौंसा देता लौट रहा था कि मार्ग में किसी घायल मुसलमान ने उठकर निशान के हाथी का हौदा काट डाला जिससे निशान और आदमी नीचे गिर पड़े। यद्यपि वह मुसलमान वहीं काट डाला गया परंतु झंडे के गिरते ही रानियों ने चिता लगाकर अपने कोमल शरीरों को उसमें भस्मीभूत कर दिया । राव विजय का आनंद मनाता हुआ गढ़ में आया तो वहाँ सब निरानंद हो गया । वह बड़े सोच में पड़ गया । संसार को स्वप्न का खेल समझ वह शरीर का मोह छोड़ शिवमंदिर में श्राया और अपने हाथ अपना सिर उतार शिवजी पर चढ़ा कमल पूजा कर शिवलोक सिधारा । उसके विषय में एक प्राचीन दोहा है
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सिंह विषय और नर वचन, कदली फलि इक बार । तिरिया तेल हमीर हठ, चढ़े न दूजी बार ॥
राव हम्मीर के इस प्रकार के समाचार सुन अलाउद्दीन अपनी सेना की मार्ग में फिर इकट्ठा कर लोटा और विकट लड़ाई में विजय प्राप्त कर वहाँ का मालिक हुआ । यह संवत् १३५८ वि० में हुआ
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