________________
इतिहास-प्रसिद्ध दुर्ग रणथंभौर का संक्षिप्त वर्णन १६३ पुत्र और भाई का अधिकार रहा। जब पृथ्वीराज के भाई हरिराज ने पृथ्वीराज के पुत्र रेणसी ( राजदेव जिसे किसी किसी ने गोविंदराज ( कोला) भी लिखा है ) से अजमेर का राज्य छीनकर दिल्ली पर चढ़ाई की, तब रेणसी रणथंभौर चला गया। उसके पुत्र का नाम वाल्हणदेव था जिसके प्रह्लाददेव और वाग्भट, प्रह्लाद के वीरनारायण हुआ जो शमसुद्दीन अल्तमश से लड़ा और मारा गया । संवत् १२८३ वि० में रणथंभौर पर मुसलमानों का अधिकार हुआ। प्रह्लाद का छोटा भाई मालवा विजय करने चला गया था और वहीं राज्य कर रहा था। समाचार सुनकर उसने रणथंभौर पर चढ़ाई की और मुसलमानों को मारकर उस पर अपना अधिकार कर लिया। जलालुद्दीन खिलजी के समय में उलगखो नामक किसी सेनापति ने दो बार संवत् १३४७-४८ में रणथंभौर पर चढ़ाई की, पर उसे परास्त होकर लौटना पड़ा। वाग्भट (शूरजी) के पुत्र जयत और रणधीरजी हुए। रणधीर को ६ लाख की जागीर का छाण का परगना मिला। जयत का पुत्र प्रसिद्ध राव हम्मीर (हठी हमीर) हुआ। इसके समय में मीर मुहम्मदशाह नाम का कोई सरदार बादशाह अलाउद्दीन खिलजी की किसी बेगम को लेकर इसकी शरण में चला आया जिसको इसने शरण में रखा । बादशाह ने दूत भेज धमकी के साथ अपने बागी सर्दार को मांगा, पर राव ने शरणागत को देना क्षत्रिय-धर्म के विरुद्ध समझ बादशाह को कोरा उत्तर दे दिया। अलाउद्दीन जलकर चढ़ आया और
(.) कवालजी ( राज्य कोटा की बलबन कोठरी में ) के मंदिर में रा. ब. पंडित गौरीशंकर हीराचंदजी अोमा को एक प्रशस्ति मिली है जो संवत् १३४५ की है। उसमें जैत्रसिह के विषय में लिखा है कि उसने मंडप (मांडू = मालवा) के जयसिह को सताया; कूर्मराजा और करकरालगिरि के राजा को मारा और अंपायथा के घाटे में मालवा के राजा के सैकड़ों लड़ाकू वीरों को परास्त किया।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com