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नागरीप्रचारिणो पत्रिका
राजकुमार इस दृश्य को न आया । अचानक ये दोनों तुरंत महात्मा
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कूद पड़ा और जल में गायब हो गया । खड़े खड़े देखते रहे पर सूर उनको नजर किनारे पर इनकी दृष्टि महात्मा पर पड़ी । के पास आए और प्रणाम कर बैठ गए । महात्मा ने आँखे खोल - कर उनकी ओर देखा और प्रीतिपूर्वक कहा - " कुमार ! शिकार जल में चला गया; खैर, शिवजी का ध्यान करो " ध्यान करते ही शिव-पार्वती के दर्शन हुए, जिन्होंने उन्हें आशीर्वाद देकर किला निर्माण करने की आज्ञा दी : प्राज्ञानुसार राजकुमारों ने वहाँ पर एक किला बनवाया जिसका नाम शिवजी की आज्ञा से रणस्तंभर या रणथंभौर रखा । किले की प्रतिष्ठा खूब धूमधाम से की गई । प्रथम गणेशजी की स्थापना हुई और सर्वत्र – राज्य भर में -- विवाह के समय आरंभ में इन्हीं गणेशजी को निमंत्रित कर पूजने की प्रज्ञा प्रचलित की गई और राजकुल में इन्हीं गणेशजी का आह्वान करना प्रधान रखा गया । पास ही शिवजी की स्थापन! करके प्रतिष्ठा का कार्य पूर्ण किया गया ।
चौहानों की वंशावली में राव शूर के दो बेटों का नाम जैत (जयत) और रणधीर है । जैतराव हम्मीर के पिता, और रणधीर काका थे जिनको छाय का परगना मिला था । अतः इस कथा को ठीक नहीं मान सकते क्योंकि इनसे पहले रणथंभौर का दुर्ग था और दीर्घ काल से चौहानों के अधिकार में चला आ रहा था । संवत् १२४६ वि० में पृथ्वीराज के पीछे दिल्ली में मुसलमानों का अधिकार हो जाने पर अजमेर और रणथंभौर में पृथ्वीराजजी के
( १ ) मैनपुरी के इतिहास में चौहान राजा रणथंभनदेव का बनाया लिखा है जो बहुत पहले हुए थे । १२ वीं शताब्दि के मध्य में वीसल के पुत्र पृथ्वीराज प्रथम की रानी रासलदेवी ने, जैन साधु श्रभयदेव ( मलधारी ) के उपदेश से, रणस्तंभपुर ( रणथंभौर ) के जैन मंदिर पर स्वर्ण "का" कलस..
चढ़ाया था ।
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