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इतिहास-प्रसिद्ध दुर्ग रणथंभौर का संक्षिप्त वर्णन १५६ गढ़ रणथंभौर में ६ जागीरदारों की किलेदारी है। मारा माखा. पचेवर बरनाला, झिलाय और धूलावड़ा के जागीरदार किलेदार हैं। इनमें से प्रत्येक के पचहत्तर पचहत्तर जवान वहाँ रहते हैं और जयपुर राज्य खालसे के भी ५०० जवान रहते हैं। इनके सिवा चारो दरवाजों के तालों पर दो दो माने और कुछ चौकियों पर भी मीने रहते हैं। किले में मुख्य गणेशजी की प्रसिद्ध और भव्य मूर्ति. एक सुंदर मंदिर में, विराजमान है। इन्हें गढ़ रणथंभौर के विनायक कहते हैं। समस्त राजपूताने की छत्तीसो जातियों में विवाह के समय इनका आह्वान किया जाता है। यहाँ पर यह कहावत प्रसिद्ध है कि "विनायक मनायो नाज आयो, टोडरमल जीतो नाज बीतो' अर्थात् विवाह के समय विनायक गणेश बैठते हैं तब घर में ऋद्धि-सिद्धि आकर विवाह को पूर्ण करा देती हैं, किसी बात की कमी नहीं रहती। विवाह होने पर गणेशजी का पट्टा उठा दिया जाता है, तब प्रत्येक चीज की तंगी दिखाई देने लगती है । राजपूताने के बाहर भी दूर दूर तक इन गजानन भगवान का आह्वान होता है। किले में ५ बड़े बड़े टोंके (तालाब) हैं। एक के सिवा सबमें पानी भरा रहता है और सब स्वाभाविक बने हुए हैं। इन टाँको के नाम पद्मला (छोटा), सुखसागर, बड़ा हाद, राणी हैाद और जगाली हैं।
गढ़ के मुख्य मंदिरों में गणेशजी, शिवजी और रामलला के मंदिर हैं। एक जैन मंदिर भी है। रामललाजी का मंदिर शिखरबंद मंदिर है। बत्तीस बत्तीस खंभों की तीन बड़ी बड़ी छतरियाँ हैं, जिनमें से प्रत्येक में लिंगाकार शिवजी की दीर्घ मूति अत्यंत सुदर
और दर्शनीय है। परंतु देख रेख न होने के कारण कबूतरों की बीटों से बिगड़ रही है। यहाँ पर एक गुफा में गुप्तगंगा (जिसे कोई कोई आकाशगंगा भी कहते हैं ) नाम का, गज भर लंबा
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