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नागरीप्रचारिणी पत्रिका ई० स० ५१० में शासन करता था तो बालादित्य की गुप्त राजा भानुगुप्त से समता करना बहुत ही युक्ति-संगत प्रतीत होता है। इस (भानुगुप्त) के नाम का उल्लेख एरण की प्रशस्ति (गु० ले० नं० २०) में मिलता है। लेख के वर्णन से ज्ञात होता है कि ई० स० ५१० में भानुगुप्त ने अपने सेनापति गोपराज के साथ हूणों से युद्ध किया जिसमें गोपराज मारा गया। यदि ह्वेनसांग के वर्णित बालादित्य और मिहिरकुल के युद्ध से उपर्युक्त लड़ाई का तात्पर्य हो, तो यह ज्ञात होता है कि बालादित्य, गुप्त-नरेश भानुगुप्त की उपाधि थी। जो हो, इस विषय में कोई सिद्धांत स्थिर नहीं किया जा सकता। बालादित्य के पुत्र वज्र ने उत्तर दिशा में एक संघाराम बनवाया था। डा० राय चौधरी का मत है कि इसी वन को मालवा के राजा यशोधर्मन् ने ई० स० ५३३ के समीप मार डालारे । इस प्रकार गुप्त-वंश का नाश हुमा । इन सब विवेचनों का सारांश यही है कि कुमारगुप्त प्रथम तथा बुधगप्त के घंशज ही नालंदा के महाविहार की वृद्धि करने में संलग्न रहे। इनके गुप्त-वंशज होने में तनिक भी संदेह नहीं है।
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(१) स्मिथ-भारत का प्राचीन इतिहास, पृ० ३१६ । (२) राय चौधरी-प्राचीन भारत का राजनैतिक इतिहास, पृ. ४०३ ।
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