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नालंदा महाविहार के संस्थापक
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है । इन संस्थापकों के विषय में यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ये गुप्त वंश के अंतिम नरेश थे । इस विहार के जन्मदाता शकादित्य की गुप्त सम्राट् चन्द्रगुप्त द्वितीय के पुत्र कुमारगुप्त प्रथम से समता बतलाई जा चुकी है । कुमारगुप्त प्रथम बहुत समय तक शासन करता रहा। इसको मृत्यु के पश्चात् स्कंदगुप्त ई० स० स्कंदगुप्त का सौतेला भाई पुर
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४५५-४६७ तक राज्य करता रहा ।
गुप्त
और उसके पुत्र तथा पात्र कुमारगुप्त द्वितीय ई० स० ४६७ से ४७६ तक शासन करते रहे । इन राजाओं का नालंदा महाविहार से कोई संबंध था या नहीं इसके विषय में ऐतिहासिक उल्लेख नहीं मिलता । बुधगुप्त ने कुमारगुप्त द्वितीय के बाद ई० स० ४७६ से ४६४ तक राज्य किया और इस विहार की बहुत सहायता की । यह शक्तिशाली नरेश था । बुधगुप्त का साम्राज्य बहुत विस्तृत था । इसने दामोदरपुर ( उत्तरी बंगाल ) से लेकर एरण ( मालवा ) पर्यंत शासन किया । ह्वेनसांग ने वर्णन किया है कि शक्रादित्य के पुत्र 'बुधगुप्त राज' ने अपने पिता के संचाराम से दक्षिण दिशा में दूसरे विशाल संघाराम की संस्थापना की । बुधगुप्त के पुत्र 'तथागत राज' ने पूरब की ओर एक संघाराम बनवाया' । इसका पुत्र बालादित्य अपने पूर्वजों से भी अधिक इस महाविहार की वृद्धि में संलग्न रहा । उसने चार विशाल संघाराम बनवाए २ । ऐतिहासिकों में बालादित्य के विषय में बहुत विवाद है । कोई इसकी नरसिंह गुप्त से समता बतलाते हैं, जिसका खंडन ऊपर किया जा चुका है। ह्वेनसांग के कथन से बालादित्य हूण राजा मिहिरकुल का समकालीन था । स्मिथ महोदय के मतानुसार यदि मिहिरकुल
( १ ) बील - ह्वेनसांग का जीवन-चरित, पृ० ११० । ( २ ) वाटर - ह्वेनसांग, जिल्द १, पृ० २८६ ।
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