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________________ १५४ नागरीप्रचारिणी पत्रिका इनसे समीकरण किए गए गुप्त राजाओं के धर्म पर विचार करें तो समीकरण की पुष्टि नहीं होती यह तो प्रसिद्ध बात है कि गुप्तनरेश वैष्णव धर्मानुयायी थे। कुमारगुप्त प्रथम भी वैष्णव वर्मावलंबी था जिसकी पुष्टि उसके लेखों तथा सिक्कों में उल्लिखित 'परमभागवत' की उपाधि' तथा गरुडध्वज से होती है । परंतु इस राजा के नालंदा महाविहार के संस्थापक होने से आश्चर्य नहीं होना चाहिए । यदि गुप्त-लेखों का सूक्ष्म अध्ययन किया जाय तो स्पष्ट ज्ञात होता है कि गुप्त काल में दूसरे धर्म भी प्रचलित थे तथा उनके प्रति गुप्त-नरेश उदारता का व्यवहार करते थे I कितने अन्य धर्मानुयायी ( अभय, वीरसेन, आम्रकार्दव ) गुप्तों के पदाधिकारी थे रे । ऐसे समय में यदि कुमारगुप्त प्रथम ने नालंदा की संस्थापना की तो वह बौद्ध नहीं कहा जा सकता । स्कंदगुप्त भी परमभागवत कहलाता था । पुरगुप्त तथा नरसिंहगुप्त के विषय में कुछ विशेष ज्ञात नहीं है; परंतु कुमारगुप्त द्वितीय' भितरी के मुद्रालेख ' में 'परमभागवत' कहा गया है । इस मुद्रा पर गरुड़ की प्राकृति है जो वैष्णवधर्म का चिह्न है । अतएव यह स्पष्ट प्रकट होता है कि गुप्त राजा वैष्णवधर्मानुयायी थे; परंतु ह्वेनसांग के वर्णित नालंदा के संस्थापकगण बौद्ध थे । उपर्युक्त तिथि, उपाधि तथा धर्म के विवेचनों से यहो ज्ञात होता है कि नालंदा महाविहार के संस्थापकों का कुमारगुप्त प्रथम के अतिरिक्त अन्य राजाओं से पूर्वोल्लिखित समीकरण समीचीन नहीं (१) फ्लीट – गुप्त-लेख नं० ८, ६, १३ । ( २ ) गरुडध्वज सोने के प्रत्येक सिक्को पर अंकित है । (३) गुप्त - लेख नं० ५, ६, ११ । ( ४ ) गु० ले ०, नं० ( ५ ) J. A. S. कुमारगुप्तः )। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat १२, चांदी के सिक्के | B. 1889 ( परमभागवत महाराजाधिराज श्री www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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