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नालंदा महाविहार के संस्थापक
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( परमार्थ - कृत वसुबंधु के जीवन-वृत्तांत में ) की पदवियाँ प्रयुक्त हैं; परंतु तथागतगुप्त के नाम के साथ इनका सर्वथा अभाव है । बालादित्य का नरसिंहगुप्त से समीकरण करने में विद्वान इसकी ( नरसिंहगुप्त की ) पदवी बालादित्य का ही अवलंबन लेते हैं । एलन तथा भट्टशाली महोदय ह्व ेनसांग के वर्णित बालादित्य से गुप्त-नरेश नरसिंहगुप्त की समता बतलाते हैं; ' किंतु इसे मानने में अनेक बाधाएँ उपस्थित होती हैं । उसी समय के प्रकटादित्य के सारनाथवाले लेख से ज्ञात होता है कि उसके वंश में कई व्यक्ति बालादित्य के नाम से प्रसिद्ध थे । ऐसी परिस्थिति में यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि किस बालादित्य ने हूण राजा मिहिरकुल को परास्त किया, जिसका वर्णन ह्वेनसांग ने किया है । दूसरे यदि ह्वेनसांग के बालादित्य तथा नरसिंहगुप्त के वंशवृक्ष का अवलोकन करते हैं तो दोनों में बड़ी भिन्नता दिखलाई पड़ती है । ह्वेनसांग के वर्णित बालादित्य के पिता का नाम तथागतगुप्त और पुत्र का वज्र था; परंतु भितरी के मुद्रालेख में नरसिंहगुप्त के पिता पुरगुप्त और पुत्र कुमारगुप्त द्वितीय के नामों का उल्लेख मिलता है । इस अवस्था में बालादित्य का नरसिंहगुप्त से समीकरण युक्ति-संगत नहीं प्रतीत होता । इस विवेचन के आधार पर यह ज्ञात होता है कि केवल पदवी की समानता से कोई सिद्धांत स्थिर नहीं किया जा सकता ।
इसी संबंध में एक बात और विचारणीय है } चीनी यात्रो ह्वेनसांग के कथन से या बौद्ध महाविहार के संस्थापक होने के नाते शक्रादित्य से लेकर वज्र पर्यंत सभी बैद्ध धर्मावलंबी थे । यदि
( १ ) एलन - गुप्त - सिक्कों की भूमिका ।
२) फ्लीट - गुप्त - लेख, पृ० २८२ |
( ३ ) संभवतः बालादित्य गुप्त राजा भानुगुप्त की उपाधि थी, जिसने एरण के समीप गोपराज के साथ हूणों से युद्ध किया था। उसी स्थान के लेख में उसका नाम भी उल्लिखित है । - गु० ले ० नं० २०, ई० स० ५१० ।
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