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नागरी प्रचारिणो पत्रिका
गुप्त से समीकरण नहीं माना जा सकता । इस गुप्त-नरेश बुधगुप्त के लेखों तथा सिक्कों से निम्न लिखित चार तिथियाँ ज्ञात हैं-
(अ) सारनाथ का लेख, गु० सं० १५७१ ।
( ब ) दामोदरपुर (उत्तरी बंगाल ) का ताम्रपत्र, गु० सं० १६३२ । ( स ) एरण ( सागर, मध्यप्रदेश ) का लेख, गु० सं० १६५३ । ( द ) बुधगुप्त के चाँदी के सिक्के, गु० सं० १७५४ । इन तिथियों के आधार पर यह ज्ञात होता है कि बुधगुप्त ई० स० ४७६-७७ से लेकर ई० स० ४६४-६५ तक शासन करता था । अतः इस अवधि के शासनकर्ता का स्कंदगुप्त ( ई० स० ४५५ - ४६७) से समीकरण करना नितांत भूल हैं I इस समीकरण के निर्मूल सिद्ध होने के कारण सारी इमारत नष्ट हो जाती है और तथागतगुप्त का पुरगुप्त से, बालादित्य का नरसिंहगुप्त से तथा वज्र का कुमारगुप्त द्वितीय से समीकरण नहीं हो सकता ।
यदि इन राजाओं के लेखे। तथा सिक्कों में उल्लिखित उपाधियों पर विचार किया जाय तो विद्वान् लेखक के समीकरण को कोई व्यक्ति मानने के लिये प्रस्तुत नहीं हो सकता । कुमारगुप्त प्रथम के अतिरिक्त गुप्त-नरेशों की जितनी उपाधियाँ मिलती हैं उन सबका ह्वेनसांग के उल्लिखित राजाओं में प्रभाव दिखलाई पड़ता है। स्कंदगुप्त के लेखों में विक्रमादित्य तथा क्रमादित्य की पदवियाँ मिलती हैं; परंतु बुधगुप्त के लिये कोई भी उपाधि नहीं मिलती। इसी प्रकार पुरगुप्त के लिये 'प्रकाशादित्य' (सिक्कों में ) और 'विक्रमादित्य'
( १ ) श्रार्यालॉजिकल सर्वे रिपोर्ट, ६११४-१५, पृ० १२४-१२५ । (२) ए० ई०, जिल्द १५ ।
(३) फ्लीट - गुप्त लेख, नं० १६ ।
( ४ ) राखालदास बैनर्जी - गुप्त - लेक्चर, पृ० २४६ ।
(५) जूनागढ़ का लेख ।
( गु० ले० नं० १४ )
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