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नालंदा महाविहार के संस्थापक १५१ ( जि० गाजीपुर, संयुक्तप्रति ) के मुद्रालेख में पुरगुप्त के वंश-वृक्ष का उल्लेख मिलता है । इस लेख के आधार पर यह ज्ञात होता है कि पुरगप्त के बाद उसका पुत्र नरसिंहराप्त, तत्पश्चात् कुमारगुप्त द्वितीय क्रमश: गुप्त-राज्य पर शासन करते रहे। बनारस के समीप सारनाथ में दो लेख गुप्त संवत् १५४ और १५७ के मिले हैं। पहले लेख (गु० सं० १५४ ) से ज्ञात होता है कि कुमारगुप्त द्वितीय ई० स० ४७३-७४ में शासन करता था । तिथि के अनुसार दूसरे लेख गु० सं० १५७ में उल्लिखित गुप्त-नरेश ( बुधगुप्त' ) ने कुमारगुप्त द्वितीय के बाद शासन की बागडोर हाथ में ली होगी, या यों कहा जाय कि ई० स०४७६-७७ में बुधगुप्त शासक था। अतएव उक्त विवेचन से स्पष्ट ज्ञात होता है कि स्कंदगुप्त, पुरगुप्त, नरसिंहगुप्त तथा कुमारगुप्त द्वितीय के शासन-काल के पश्चात् ही बुधगुप्त गुप्त-सिंहा. सन का उत्तराधिकारी हुआ होगा । इस अवस्था में बुधगुप्त का स्कंद.
(१) महाराजाधिराजकुमारगुप्तस्य पुत्रः तत्पादानुध्याता महादेव्यां अनंत. देव्यां उत्पनो महाराजाधिराजश्रीपुरगुप्तस्य तत्पादानुध्यातो महादेव्यां श्रीवत्सदेव्यामुत्पन्ना महाराजाधिराजश्रीनरसिंहगुप्तस्य पुत्रः । तत्पादानुध्याता महादेव्यां श्रीमतीदेव्यां उत्पन्नो परमभागवतो महाराजाधिराज श्रीकुमारगुप्तः ।
(J. A. S. B. 1889) (२) श्राक्यालोजिकल सर्वे रिपोर्ट, १९१४-१५,पृ० १२४-२५ । (३) वर्ष सते गुप्तानां चतु: पञ्चासत उत्तरे भूमि रक्षति कुमारगुप्ते ।
(४) गुप्तानां समतिक्रांते सप्तपञ्चासत उत्तरे सते समानां पृथ्वी बुधगुप्ते प्रशास्ति।
(५) कुछ विद्वान् भितरी तथा प्रथम सारनाथ के लेखों में उल्लिखित कुमारगुप्त को गुप्त-सम्राट कुमारगुप्त प्रथम मानते हैं। परंतु यह ध्यान रखना चाहिए कि कुमारगुप्त प्रथम ई. स. ४५५ में ही परलोकवासी हो गया था और यह कुमारगुप्त ई. स. ४७३ में राज्य करता था। अतएव इसे कुमारगुप्त द्वितीय ही मानना पड़ेगा।
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