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नागरीप्रचारिणी पत्रिका माना है। कितु आज तक की संपूर्ण खोजों तथा लेखों पर विचार किया जाय तो लेखक का समीकरण कसौटी पर नहीं उतरता। विद्वान् लेखक ने यह समीकरण इस प्रकार किया है-(१) शकादित्य का कुमारगुप्त से, (२) बुधगुप्त का स्कंदगुप्त से, (३) तथागतगुप्त का पुरगुप्त से, (४) बालादित्य का नरसिंहगुप्त से, और (५) वज्र का कुमारगुप्त द्वितीय से ।
यहाँ उन राजाओं के प्राप्त लेखों के आधार पर प्रत्येक समीकरण पर विचार करने का प्रयत्न किया जायगा। यदि पाठकवर्ग उनकी तिथियों पर ध्यान देंगे तो स्पष्ट ज्ञात हो जायगा कि उपयुक्त समर समीकरण समीचीन नहीं माना जा सकता।
नालंदा महाविहार के जन्मदाता शक्रादित्य तथा गुप्त-सम्राट कुमारगुप्त प्रथम की समता मानने में किसी को संदेह नहीं है। प्रथम तो कुमारगुप्त प्रथम से पूर्व किसी गुप्त-नरेश ने 'शक्रादित्य' की पदवी धारण नहीं की थी, दूसरे कुमारगुप्त प्रथम की प्रधान उपाधि 'महेंद्रादित्य' है, जिसका 'शकादित्य' पर्यायवाची शब्द हो सकता है। महेंद्र तथा शक्र के अर्थ में समता होने के कारण शकादित्य का कुमारगुप्त प्रथम से समीकरण उपयुक्त ज्ञात होता है ।
यह तो निश्चित है कि कुमारगुप्त प्रथम का पुत्र स्कंदगुप्त पिता की मृत्यु के पश्चात् सिंहासनारूढ़ हुप्रा; परंतु बुधगुप्त का स्कंदगुप्त से समीकरण भारी भूल है। यदि उनके लेखों पर विचार किया जाय तो बुधगुप्त मौर स्कंदर.प्त के समय में बहुत अंतर दिखलाई पड़ता है। प्रायः सभी प्रसिद्ध ऐतिहासिक पंडित ने यह स्वीकार कर लिया है कि स्कंदगुप्त (शासन-काल, ई० स० ४५५-४६७) के पश्चात् उसका सौतेला भाई पुरगुप्त राज्य का उत्तराधिकारी हुआ। भितरी
(५) राखालदास बैनर्जी- गुप्त-लेक्चर, पृ० २४४ ।
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