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(३) नालंदा महाविहार के संस्थापक
( लेखक-श्री वासुदेव उपाध्याय, एम० ए०, काशी ] इतिहास के प्रेमियों को यह भली भाँति ज्ञात है कि बौद्ध-कालीन शिवालयों में नालंदा महाविहार का स्थान कितना महत्त्वपूर्ण था। इस विहार में भारतीय तथा विदेशीय लोग सुदूर प्रांतों से विद्योपार्जन के लिये आते और नालंदा के नाम से अपने को गौरवान्वित समझते थे। एक समय प्रायः दस सहस्र विद्यार्थी नालंदा में अध्ययन करते थे जिससे इसका नाम बहुत विख्यात हो गया था । इतने विशाल महाविहार के संस्थापकों के विषय में परिचय प्राप्त करना परमावश्यक है। सातवीं शताब्दी के बौद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने नालंदा महाविहार के जन्मदाता तथा इसके कलेवर के वृद्धि-कर्ताओं के नामों का उल्लेख किया है। ये नाम इस प्रकार हैं--(१) शकादित्य, (२) बुधगुप्त, (३) तथागतगुप्त, ( ४ ) बालादित्य, और ( ५ ) वज्र। यह तो निश्चित रूप से ज्ञात है कि ये राजा गुप्त-वंशज थे, परंतु इनका समीकरण
आधुनिक काल तक निश्चित रूप से स्थिर नहीं हो पाया है। 'द्विवेदी-अभिनंदनग्रंथ' में पृ. ३१६ पर नालंदा महाविहार के वर्णन के अंतर्गत, विद्वान् लेखक ने इसके संस्थापकों का गुप्त-वंश के कतिपय राजाओं से समीकरण करने का प्रयत्न किया है। अपने समीकरण को लेखक महोदय ने सत्य तथा नि:संदिग्ध
1) बील-ह्वेनसांग का जीवन-चरित, पृ० ११०.१ ।
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