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प्राचीन भारत में स्त्रियाँ
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मुक्त रखे । वस्त्र, आभूषण आदि से स्त्री को सम्मानित करना पंगु तथा अंधे पति का भी प्रथम कर्त्तव्य था' | जो पति पत्नी के मान तथा प्रतिष्ठा की रक्षा करता है वही अपनी संतान, धर्म, तथा धन की और अपनी रक्षा समुचित रूप से कर सकता है? ।
मातृ-पूजा को भारतवर्ष में सदैव से महत्ता दी गई है 1 पिता यदि सैा आचार्यों से अधिक पूजनीय है तो माता सै। पिता की अपेक्षा अधिक पूज्या है३ । पिता के मरने पर जो पुत्र माता को अनाश्रित छोड़कर उसका भरण-पोषण नहीं करते थे तथा उसकी आज्ञा का पालन नहीं करते थे वे समाज में बड़े निंदनीय समझे जाते थे । पांडवों ने घर में तथा वन में, राजा तथा भिखारी की अवस्था में, अपनी माँ का जो सम्मान किया है वह प्रशंसनीय है। कुंती का शासन सदैव उन पर रहा । उन्होंने भी माता की आज्ञा का कभी उल्लंघन नहीं किया कुंती ने श्रीकृष्ण द्वारा अपने पुत्रों को यह संदेश भेजा था कि "जिस दिन के लिये चत्राणियाँ अपने पुत्रों को जन्म देती हैं वह समय अब आ गया है" । यह संदेश सुनकर ही उनमें क्षात्र धर्म का संचार हुआ था । माता का संदेश सुनकर हो युद्धपराङ्मुख संजय वीरता पूर्वक शत्रु का सामना करने के लिये उद्यत हुआ था और प्राणपण से युद्ध करके विजयी हुआ था । माता की आज्ञा की अवहेलना उससे न हो सकी । माता के क्रोध का पात्र बनना उसके लिये मृत्यु से भी अधिक भयानक था । छत्रपति
( १ ) मनुस्मृति, ६–६ ।
( २ ) वही, ६-७ ।
( ३ ) वही, २ - १४५ ।
( ४ ) वही, ६-४ | महाभारत - वनपर्व, २३–१२, २२ ।
( १ ) महाभारत उद्योगपर्व, ८-११८, ५२ ।
( ६ ) वही, १३३ ।
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