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प्राचीन भारत में स्त्रियाँ
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। ง हम सर्वदा एक दूसरे के अनुकूल
तथा हमारे हृदय एक हों
रहें ।" २ पति पत्नी के स्वातंत्र्य का किसी प्रकार भी अपहरण न करके उसे मित्र के सब अधिकार देता था। प्रेम-संबंध में छुटाई तथा बड़ाई को स्थान नहीं मिलता । मित्रता में अधिकार का प्रश्न ही नहीं उठता । पति तथा पत्नी दोनों शब्द समानता द्योतक हैं पत्नी पूर्ण स्वतंत्रता का उपभोग करती थी । पति स्वयं पत्नी से कहता है - " तू घर की सम्राज्ञी है । तू घर के सब सदस्यों पर शासन कर ३ ।" परिवार के सब सदस्य सम्राज्ञी की भाँति उसका आदर करते थे । वह सौभाग्य का पुंज थी । पति सौभाग्य के लिये उसे ग्रहण करता था । वह मंगल - कल्याण-मयी तथा सब सुखे की देनेवाली थी । पति तथा परिवार के अन्य सदस्य उससे कल्याण की आकांक्षा रखते थे । पति तथा पत्नी का संबंध अटूट तथा अखंड था । ये दोनों मिलकर ही धर्म, अर्थ, काम तथा मात की प्राप्ति के लिये प्रयास करते थे और दोनों मिलकर ही उसका उपभोग करते थे । ६ पत्नी को सुखी तथा प्रसन्न रखने में ही पति अपना परम कल्याण समझता था । पति, देवर, पिता, भ्राता इत्यादि सब संबंधी गृहपत्नी का समुचित आदर करते थे । जो जितना इनका मान तथा आदर करता था उसे उतना ही अधिक सुख तथा शांति और कल्याण की प्राप्ति होती थी । वे ही घर देवताओं के
( १ ) तैत्तिरीय एकानिकांडिका, १-३-१४, ऋग्वेद, १०-८५-४७ । ( २ ) पारस्कर गृह्यसूत्र, १-४ । (३) ऋग्वेद, १०-८५-४५। ( ४ ) वही, १०-८५-३६। (५) वही, १० - ८५-४४; ३-४-५३-६ ।
१०-७-८५-४५;
(६) मनुस्मृति, ६–१०१, १०२ । ( ७ ) वही, ३-५५, ५६ ।
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१०-७-८५-४३;
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