________________
१४४
नागरीप्रचारिणी पत्रिका हैं। अनेक राजा महाराजा स्वयंवर में बुलाए गए और प्रत्येक के गुणों का वर्णन इंदुमती के सामने किया गया तब उसने अपने इच्छानुकूल वर स्वीकार किया' । दमयंती ने जब से नल के अनेक गुण तथा कीर्ति सुनी थी तभी से वह उसके साथ विवाह करना चाहती थी। इसलिये उसने उसी के साथ विवाह किया और राजा भीम ने भी सहर्ष अनुमति दी२ । यद्यपि कन्या को इस बात का पूर्ण अधिकार था कि जिसे वह अपने योग्य समझे उसी से विवाह करे तथापि उसे अनाश्रित कभी नहीं छोड़ा जाता था और अनुकूल वर की खोज तथा विवाह आदि का पूरा उत्तरदायित्व पिता पर होता था।
समान गुण-कर्म तथा स्वभावयुक्त वर तथा वधू जब गृहस्थाश्रम में प्रवेश करते थे तब वे इसे साक्षात् स्वर्ग बना देते थे। पत्नी अपने गुणों के प्रकाश से घर को आलोकित करती थो। वह लक्ष्मी-रूप से पति को समृद्धिशाली तथा ऐश्वर्यवान् बनाती थी। वह सुख तथा शांति का केंद्र थी। वह मूर्तिमती भक्ति तथा श्रद्धा थी। वह सारे धार्मिक कृत्यों का स्रोत थी। वह पति के अपूर्ण यज्ञों को पूर्ण करती थी। पति तथा अन्य संबंधियों का स्वर्ग भी उसी के अधीन था। वह गृह की अधिष्ठात्री देवी थी। __पति तथा पत्नी दोनों परस्पर सखा हैं। सप्तपदी होने के पश्चात् पति पत्नी से कहता है-"तू मेरी परम सखी है। मैं भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि मेरी और तेरी मित्रता अटूट हो। हम दोनों एक दूसरे से प्रेम करें। हमारी अभिलाषाएँ, हमारे विचार, हमारी प्रतिज्ञाएँ, हमारे उद्देश्य और हमारा सुख एक हो। हम दोनों एकता के बंधन से सदैव बँधे रहें। हमारे चित्त, हमारे मन
(१) रघुवंश, सर्ग ६। (२) महाभारत-वनपर्ष, १३-५६७-६२२ (३) मनस्मृति, ६-२६, २८ ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com