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प्राचीन भारत में खियाँ था और ब्राह्मण विद्वान् के साथ । निश्चित शर्त को पूरी करनेवाला युवक यदि अयोग्य हुप्रा तो पुत्री को उसे अस्वीकृत करने का भी अधिकार था । द्रौपदी के स्वयंवर में जब सूतपुत्र कर्ण ने द्रुपद की शर्त को पूरा कर दिया तब उसने तुरंत कह दिया कि मैं सूतपुत्र के साथ कभी विवाह न करूंगी। पर जब पार्थ मछली की आँख का वेधन करने में सफल हुए तब उसने सहर्ष उनके गले में जयमाल पहना दी । मद्राधिपति अश्वपति तथा महाराज हिमालय अपनी पुत्री सावित्री तथा पार्वती के विवाह के लिये सदैव दुःखित तथा चिंतित रहते थे। उनकी पुत्रियों के साथ विवाह करने के लिये किसी ने प्रार्थना नहीं की और वे स्वयं इस लिये प्रार्थना नहीं करते थे कि कहीं उनकी प्रार्थना भंग न हो जाय। इसमें वे अपनी पुत्रियों का बड़ा अपमान समझते थे। इसी भय से किसी से विवाह का प्रस्ताव स्वयं न करते थे। हिमालय ने जब यह देखा कि उसकी पुत्री महादेव के साथ विवाह करना चाहती है तब उसे अभीष्ट वर की प्राप्ति के लिये गौरी-पर्वत पर तपस्या करने की अनुमति दी। अश्वपति ने अपने मंत्रियां तथा बड़े बड़े राजकर्मचारियों को सावित्री के लिये वर खोजने के निमित्त भेजा। सावित्री ने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान् से विवाह करने की इच्छा प्रकट की। उस समय सत्यवान् की आयु का केवल एक वर्ष ही अवशिष्ट था। उसके पिता के अंधे हो जाने के कारण उसके शत्रुओं ने उसे राज्य-भ्रष्ट कर दिया था और वह जंगल में निवास करता था। इसलिये सावित्री का पिता नहीं चाहता था कि उसकी पुत्री का विवाह सत्यवान के साथ हो । किंतु अंत में उसने अपनी पुत्री की इच्छा का अनुमोदन किया और सहर्ष उसे सत्यवान् के साथ ब्याह दिया । इंदुमती तथा दमयंती के स्वयंवर भी इसी के साती
(१) महाभारत-श्रादिपर्व, ११.३४ । (२) महाभारत-वनपर्व, १२१४.१२४५ ।
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