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नागरीप्रचारिणी पत्रिका का मुख्य कर्तव्य था। राजा तथा रंक, वीतराग तथा साधारण सांसारिक जन सभी पुत्रियों के सुख के लिये चिंताग्रस्त रहते थे। महर्षि कण्व अपनी पुत्री शकुंतला के लिये उतने ही चिंतित थे जितने लोपामुद्रा के पिता विदर्भराज। सीता के लिये राजर्षि जनक की चिंता, द्रुपद या महाराज भीम से किसी प्रकार न्यून न थी। राजाधिराज प्रभाकरवर्धन अपनी पुत्री राज्यश्री का विवाह जब तक योग्य राजकुमार गृहवर्मा से न कर सके तब तक वे अत्यंत चिंतित रहे। ___पुत्रो के जीवन को सुखी बनाने की अत्यधिक उत्सुकता तथा चिंता का ही परिणाम है कि आज वर तथा वधू की जन्मपत्रियाँ मिलाई जाती हैं, मुहूर्त तथा लग्न दिखाए जाते हैं और अनेक ग्रहों तथा नक्षत्रों की शांति कराई जाती है। कन्याओं के विवाह से पूर्व शिवव्रत, मौनव्रत, तुलसी-सेचन आदि अनेक ब्रत तथा उपवास उत्तम वर-प्राप्ति के लिये ही कराए जाते हैं। पुत्रो के भावी जीवन को सुखी बनाने की हार्दिक चिंता ही कदाचित् आज बाल-विवाह तथा वृद्ध-विवाह का कारण हुई होगी। पुत्री का उत्कृष्ट वर से विवाह करने के लिये पिता को इतनी चिंता रहती थी कि कभी कभी कन्या के पूर्ण ब्रह्मचर्य-व्रत की समाप्ति के पूर्व ही अनुकूल वर मिलने पर उससे कन्या का विवाह कर दिया जाता था । शास्त्रों में भी ऐसे अवसर पर आयु के नियम को शिथिल कर देने का विधान हैऔर विशेष अवस्थाओं में वाग्दत्ता कन्याओं का दूसरे वर के साथ विवाह कर देने की आज्ञा है। किंतु धीरे धीरे समय के परिवर्तन के साथ साथ यह नियम इतना शिथिल हो गया
(१) हर्ष-चरित, चतुर्थ उच्छवास । (२) मनुस्मृति, ६-८८ ।
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