SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन भारत में खियाँ १३५ शिक्षा का पूरा प्रबंध न होता था तो पिता उन्हें पुत्रों के साथ शिक्षा देने में संकोच न करते थे। प्रात्रेयी ने लव-कुश तथा अन्य ऋषि-कुमारों के साथ महर्षि वाल्मीकि से ब्रह्मविद्या का अध्ययन किया था । बौद्ध काल में भी बुद्धघोषा, संघमित्रा आदि अनेक कवयित्रियां तथा टीकाकार और भाष्यकार हो चुकी है। अनेक पिताओं को अपनी पुत्रियों की शिक्षा में इतनी रुचि थी कि वे, उनके पढ़ने के लिये, अनेक ग्रंथों की स्वयं रचना किया करते थे। किसी विशेष विषय में उनकी रुचि देखकर उनके नाम पर पुस्तको का निर्माण करते थे। भास्कराचार्य को अपनी पुत्री के बीजगणित तथा रेखागणित पर इतना गौरव था कि उसने १११४ ई. में अपनी पुत्री लीलावती के नाम पर लीलावती नामक बीजगणित पर एक अद्भुत ग्रंथ लिखा। कृषि-विद्या तथा चिकित्सा-शास्त्र में भी अनेक स्त्रियाँ निपुणता प्राप्त करती थीं। ब्रह्मवादिनी अपाला ने कृषि के संबंध में अनेक उपयोगी उपायों का आविष्कार किया था ऊसर तथा अनुर्वर भूमि को कैसे उपजाऊ बनाया जा सकता है इसका पूर्ण ज्ञान इसी ब्रह्मचारिणो को हुआ था। कौन कौन सी खाद डालने से किन किन ऋतुओं में क्या क्या पदार्थ उत्पन्न किए जा सकते हैं तथा बिना ऋतु के भी उस ऋतु के फल, अनाज तथा तरकारियाँ किन किन उपायों से पैदा हो सकती हैं इत्यादि बातों का पता इसी देवी ने लगाया था। इसने अपने पिता की ऊसर भूमि को उपजाऊ तथा हरी-भरो बनाया था। इसके अतिरिक्त इसने चिकित्सा-शास्त्र में भी पांडित्य प्राप्त किया था। जो कुष्ठ रोग आजकल प्राय: असाध्य ------- ....-...-.--.-. (१) उत्तर-रामचरित, अंक २ । (२) Heart of Buddhism. (३) ऋग्वेद, ८-। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy