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________________ १३४ नागरीप्रचारिणो पत्रिका निष्काम दान की महत्ता तथा सकाम दान की निकृष्टता इत्यादिको ब्रह्मवादिनी दक्षिणा ने ही सबसे प्रथम समझा था और दूसरों को इसका उपदेश किया था । वैदिक कर्मकांड का महत्त्व पहले पहल ब्रह्मचारिणी जूहू को मालूम हुआ था । ब्रह्मचारिणी ब्रह्मवादिनी गार्गी ने महर्षि याज्ञ्यवल्क्य के साथ विद्वत्तापूर्वक शास्त्रार्थ किया था । इसकी कथा उपनिषदों में प्रसिद्ध है । एक बार राजर्षि जनक ने कुरु, में 1 3 बहुदक्षिणा नामक यज्ञ किया । पांचाल आदि सब देशों से ब्रह्म-परायण विद्वान् उस यज्ञ सम्मिलित हुए । विदेहराज यह जानना चाहते थे कि उनमें से कौन सबसे अधिक ब्रह्म-परायण है उन्होंने दस सहस्र गाएँ मँगवाकर उनके सोंगों पर स्वर्णमुद्राएँ बाँधकर, एकत्र ब्राह्मणों से कहा कि जो कोई अपने को सबसे अधिक ब्रह्मिष्ठ समझे वह इन गायों को ले सकता है। किसी भी ब्राह्मण ने जब इन्हें लेने का साहस न किया तब महर्षि याज्ञवल्क्य खड़े हुए। अन्य सब महर्षि बड़े क्रुद्ध हुए और उनकी परीक्षा लेने के लिये अनेक प्रकार के प्रश्न करके उन्हें हराने का प्रयत्न करने लगे पर जब उनमें से कोई भी उन्हें परास्त न कर सका तब गार्गी खड़ी हुई । इस देवी ने प्रश्नों की एक श्रृंखला बाँध दी । उसकी विद्वत्तापूर्ण प्रश्नावली, अलौकिक प्रतिभा तथा अद्वितीय तर्क-शक्ति से याइयवल्क्य घबरा उठे और उन्होंने बड़े सुंदर शब्दों में अपनी पराजय को स्वीकार किया । मंडन मिश्र तथा शंकर में जब शास्त्रार्थ हुआ तब उसमें मध्यस्थ के प्रासन को मंडन मिश्र की विदुषी भार्या भारती ने अलंकृत किया। ऐसे अद्वितीय विद्वानों के शास्त्रार्थ की मध्यस्था एक परम विदुषी तर्क- शिरोमणि, सर्वशास्त्रपारंगत तथा प्रतिभा संपन्न महिला ही हो सकती थी । यदि किसी स्थान पर कन्याओं की " ( ४ ) ऋग्वेद, १०-१०६ । ( २ ) बृहदारण्यक उपनिषद्, अध्याय ३, ब्राह्मण १-३ । - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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