________________
प्राचीन भारत में खियाँ
१३३ भी दर्शन तथा वैद्यक को प्रधानवा दी जाती थी और. इसी पुरातन प्रणालो के अनुसार अब भी साहित्य, इतिहास, गणित, विज्ञान, अर्थ-शास्त्र, कृषिविद्या आदि किसी भी विषय के विद्वान् को डी० फिल. अथवा पी-एच० डी० अर्थात् ब्रह्मवादी की उपाधि से ही अलंकृत किया जाता है। वास्तव में पी-एच० डी० या ब्रह्मवादिनी का एक हो अर्थ है। प्राचीन भारत में भिन्न भिन्न विषयों की विदुषी स्त्रियाँ ब्रह्मवादिनी कही जाती थीं। उनको वर्तमान विश्वविद्यालयों की भाषा में पी-एच० डी० या डी० फिल० कहा जा सकता है। प्राचीन साहित्य में विशेषत: पंद्रह ब्रह्मवादिनी स्त्रियों के नामों का उल्लेख है। । इनके अतिरिक्त अनेक और भी ब्रह्मवादिनी स्त्रियाँ हुई होंगी जिनका प्रमी तक पता नहीं लग सका है। मंत्रद्रष्टा ऋषियों में विश्ववारा का नाम मुख्य है। इस ब्रह्मवादिनी को वैदिक अग्निहोत्र आदि शुभ कार्यों का विशेष ज्ञान था । घोषा ने त्रियों के विषय में अनेक बातो का अनुसंधान किया था। पुत्री पत्नी तथा माता के रूप में स्त्री का कर्तव्य, धर्म समाज राजनीति तथा परिवार में स्त्रियों का स्थान, ब्रह्मचर्य तथा गृहस्थ आश्रम में स्त्री के कर्त्तव्य, विवाह की आवश्यकता और विवाह के प्रकार इत्यादि के संबंध में गूढ़ विचार इसी ने तत्कालीन भारत के सामने रखे थे३ : सूर्या ने भी विवाह के विषय में बड़ी गवेषणा की थी । दान की महिमा-उत्तम, मध्यम, निकृष्ट तथा सात्विक, राजस
और तामस दान के प्रकार, दान में कुपात्र तथा सुपात्र का विचार, -- --~
(१) लोपामुद्रा, विश्ववारा, शाश्वती, अपाला, घोषा, वाक, शतरूपा, सूर्या, दक्षिणा, जूहू, रात्रि, गोधा, श्रद्धा, शची, सर्पराज्ञी ।
(२) ऋग्वेद, अनु. २, सूक्त २८ । (३ ) वही, ३६, ४० । (४) वही, १०-८५।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com