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________________ प्राचीन भारत में स्त्रियाँ १३१ योग्यता प्राप्त करती थों। गणित का ज्ञान भी उनके लिये आवश्यक था; क्योंकि अपने भावी जीवन में उन्हों को घर की आय तथा व्यय का ब्योरा रखना पड़ता था। आर्य-शास्त्रों ने शिशु-पालन को बड़ी महत्ता दी है। आर्य लोग सोलह संस्कारों द्वारा अपने शरीर तथा आत्मा को सुसंस्कृत करते थे। इन सोलह संस्कारों में से दस का बच्चे के साथ संबंध है । पुत्रियों के लिये शिशु-पालन का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक समझा जाता था। इसके साथ साथ कन्याओं को धात्री-शिक्षा से भी अनभिज्ञ न रखा जाता था। शरीर-विज्ञान तथा पाक-शाख की पंडिता भी वे अवश्य होती रही होंगी। इन विषयों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त किए बिना 'जीवेम शरदः शतम्' का पाठ व्यर्थ प्रतीत होता है। आजकल की भाँति पूर्व काल में भी स्त्री तथा पुरुष दोनों के लिये 'कब' ( गोष्ठी ) होते थे। कुमारी कन्याओं में इतनी योग्यता पैदा की जाती थी जिससे वे इनमें सम्मिलित हो सकें। कुमारी का गोष्ठी-प्रिय होना एक आवश्यक गुण समझा जाता था । इन गोष्ठियों में साहित्य तथा काव्य की चर्चा हुअा करतो थी। अनेक प्रकार की कलाओं का प्रदर्शन होता था। गायन, वादन, नृत्य, कविता-निर्माण तथा चित्र-लेखन आदि कलाएँ उनका प्राभूषण था। राजा से लेकर रंक तक सभी अपनी पुत्रियों को इन कलाओं की - - -- - - - -- (१) Institutes of Vishnu 7.113, 114. (5. B. E.) Grihyasutras 25-4; 49-51; 210-14; 281-3. (S. B. E.) अथर्ववेद, ६७, २६३, ५०३ । उपनिषद्, २२३ । जैनसूत्र, : १२-२२१ । मनुस्मृति, २-२६, ३६ । (२) वात्स्यायन-सूत्र, १३, १५ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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