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( २ ) प्राचीन भारत में स्त्रियां [ लेखक-कुमारी रामप्यारी शास्त्री, बी० ए०, कोटा ] ऐसा विश्वास प्रचलित है कि आर्य शास्त्रों में नियों का स्थान बहुत नीचा है। निस्संदेह किसी समय कई कारणों से भारत में त्रियों की स्थिति में बहुत परिवर्तन आ गया था। परंतु त्रियों की परिस्थिति सदा से ही ऐसी नहीं रही। मध्यकालीन संकटों के कारण सच्छात्रों की चर्चा छूट गई थी और सामाजिक नियमों तथा मर्यादाओं में घोर रूपांतर हो गया था। फलत: अनेक कुरीतियों का प्रादुर्भाव हुआ और लोग शाखों को भी अपनी हीन दशा का प्रतिबिंब समझने लगे।
मनु ने एक वाक्य में संक्षिप्त रीति से बतलाया था कि आर्यसमाज में त्रियों का क्या स्थान होना चाहिए और पिता, पति तथा पुत्रों का उनके प्रति क्या कर्त्तव्य है। परंतु आदर्श मर्यादानां को भुला देने के कारण लोग इसका यह अर्थ करने लगे कि पिता के घर में, विवाह होने पर पति के घर में और यहाँ तक कि वृद्धा हो जाने पर पुत्रों के समय में भी स्त्रियों को किसी प्रकार की स्वतंत्रता नहीं होनी चाहिए । ___ प्राचीन इतिहास को देखने से विदित होता है कि स्मृतिकार का यह वाक्य वास्तव में आर्य-परिवार तथा आर्य-समाज में स्त्रियों के ऊँचे स्थान का स्मारक है।
उचित रीति से पुत्री का लालन-पालन करना, उसकी शिक्षा का पूर्ण प्रबंध करना तथा ब्रह्मचर्य व्रत को पूर्ण करने के पश्चात् योग्य
(1) पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने ।
रक्षन्ति स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातंत्र्यमहति ॥
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