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________________ १२८ __नागरीप्रचारिणी पत्रिका राधास्वामी-"जान बूम हम लीला ठानी । मैौज हमारी हुइ सुन वानी ॥ काल रचा हम समझ बूझ के । बिना काल नहिं खौफ जीव के ॥ कदर द्याल नहिं बिना काल के । मौज उठी तब अस दयाल के ॥ दिया निकाल काल को ह्या से । दखल काल अब कभी न ह्या से ॥ काल न पहुंचे उसी लोक में। अबम करूँ ऐसी मौज मैं । एक बार यह मौज जरूर । अब मतलब नहीं डाली दूर ॥ तू शंका मत कर अब चित में । चलो देश हमरे रहो सुख में ॥ इसके अनुसार अपनी 'मौज' अथवा लीलामयी स्वतंत्र इच्छा के कारण राधास्वामी (परमात्मा ) सुरत ( जीवात्मा ) को अपने से वियुक्त कर कालपुरुष ( यम.) को सौंप देता है। अन्यथा जीव दयाल की दया के महत्त्व को नहीं समझ पाता। इसी दया के महत्त्व को प्रकट करने के उद्देश्य से कालपुरुष की भी रचना हुई है। जब सुरत को दयाल की दया का महत्त्व मालूम हो जाता है तब वह काल के फंद से छुड़ा लिया जाता है और उसे फिर परमात्मा के शाश्वत समागम का सौभाग्य प्राप्त हो जाता है। प्रायः सभी धार्मिक दर्शनों में वियोग का यही कारण बतलाया जाता है। विशिष्टाद्वैतियों तथा भेदाभेदियों के लिये यह वास्तविक कारण है और इस संबंध में वह उनकी जिज्ञासा की भी शांति कर देता है। परंतु अद्वैतवादियों के अनुसार तो वियोग भी केवल एक व्यावहारिक सत्य है। पारमार्थिक रूप में तो कभी वियोग हुआ ही नहीं था। इसलिये वियोग का यह कारण भी व्यावहारिक ही हो सकता है। इसका उपयोग केवल उन्हीं लोगों को समझाने के लिये किया जा सकता है जो अभी प्रज्ञान के प्रावरण को नहीं हटा पाए हैं। (१) सारवचन, भाग १, ७७-८२ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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