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________________ हिदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय १२३ शिवदयाल ने आत्मा और परमात्मा का भेद इस तरह स्पष्ट किया है भंकि और भगवंत एक हैं, प्रेम रूप तू सतगुरु जान । प्रेम रूप तेरा भी भाई सब जीवन को याही जान ।। एक भेद यामें पहिचाना, कहीं बुंद कहीं लहर समान । कहीं सिंध सम करे प्रकासा, कहीं सोत औ पोत कहान' ॥ सुरत (जीवात्मा) और राधास्वामी (परमात्मा) मूल-स्वरूप में प्रवश्य एक हैं परंतु विस्तार अथवा महत्ता में नहीं। सुरत भी प्रेमस्वरूप है, परंतु राधास्वामी तो प्रेम का भांडार ही है। अगर सुरत जल की बूंद है तो परमात्मा समुद्र। जिस प्रकार सागर की एक बूंद में सागर के सब गुण विद्यमान रहते हैं उसी प्रकार जीवात्मा में भी परमात्मा के सब गुण विद्यमान हैं, परंतु कम मात्रा में। शाहजादा दाराशिकोह के प्रश्नों के उत्तर में बाबालाल ने भी इस संबंध में अपना मत बहुत स्पष्टता के साथ प्रकट किया है । दारा शिकोह ने पूछा-"क्या जीवात्मा, प्राण और देह सब छाया मात्र हैं ?" बाबालाल ने उत्तर दिया-"जीवात्मा और परमात्मा मूल-स्वरूप में एक समान हैं और जीवात्मा उसका एक अंश है। उनके बीच वही संबंध है जो बुंद और सिंधु में। जब बुंद सिंधु में मिल जाता है तो वह भी सिंधु ही हो जाता है।" इससे भी जब दारा शिकोह का पूरा समाधान न हुआ तो उसने फिर पूछा-'तो फिर जीवात्मा और परमात्मा में भेद क्या है ?" इसके उत्तर में बाबालाल ने कहा- "उनमें कोई भेद नहीं है। जीवात्मा को हर्ष-विषाद की अनुभूति इसलिये होती है कि वह पांचभौतिक शरीर के बंधन में (१) 'सारवचन', भाग १, पृ० २२६ । (२) वह भंडार प्रेम का भारी जाका श्रादि न अंत देखात । -'सारवचन', भाग १, पृ० २२७ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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