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________________ १२२ नागरीप्रचारिणी पत्रिका ૧ - जब श्रापु में श्रापु लह्यो अपना तब श्रपन्वै जाप रह्यो जपनेा । जब ज्ञान को भान प्रकास भयो जगजीवन होय रह्यो सपना ॥ सुंदरदास को तो शांकर अद्वैत का पूर्ण शास्त्रीय ज्ञान था जो उनकी रचनाओं से पूर्ण रूप से प्रकट हो जाता है । अद्वैत ज्ञान के संबंध में उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है परमातम श्ररु श्रातमा, उपज्या यह श्रविवेक । सुंदर भ्रम थैं दोय थे, सतगुरु कीए एक ॥ परंतु शिवदयाल, प्राणनाथ आदि अन्य संत यद्यपि इस बात को मानते हैं कि जीवात्मा का अंततः परमात्मा में निवास है फिर भी वे यह नहीं मानते कि वह पूर्ण ब्रह्म है । उनके अनुसार जीवात्मा भी परमात्मा है अवश्य, परंतु पूर्य ५. श्रंशाशि संबंध नहीं । परमात्मा अंशी है और जीवात्मा अंश । प्राणनाथ कहते हैं अब कहूँ इसक बात, इसक सबदातीथ साख्यात ।... ब्रह्म सृष्टि ब्रह्म एक श्रंग, ये सदा श्रनंद अतिरंग३ ॥ अर्थात् सृष्टि अत्यंत आनंदमय प्रेम-स्वरूप परमात्मा का एक अंग मात्र है। शिवदयाल ने अद्वैतवादी वेदांतियों के संबंध में कहा है कि सत्य पुरुष के पास से आनेवाली अंशरूप जीवात्मा (सुरत) का वे रहस्य नहीं जानते सुरत अंश का भेद न पाया । जो सतपुरुष से श्रान समाया " ।। रायबहादुर शालिग्राम ने भी अपनी प्रेमबानी में कहा है जीव श्रंस सत पुरुष से आई ।... ५ पुरुष श्रंस तू धुरपद से श्राई । तिरलोकी में रही फँसाई 300 (१) सं० बा० सं०, भाग २, पृ० १४१ । ( २ ) वही, भाग १, पृ० १०७ । (३) 'ब्रह्मबानी', पृ० १ ( खोज रिपोर्ट ) । (४) 'सार बचन', भा० १, पृ० ८५ । (५) 'प्रेम बानी', भा० १, पृ० ५४ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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