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हिंदो काव्य में निर्गुण संप्रदाय
११६ हम सब माहिं सकल हम माहीं। हम थें और दूसरा नाहीं ॥ तीन लोक में हमारा पसारा । आवागमन सब खेल हमारा ॥ खट दर्शन कहिपत हम भेखा । हमहि अतीत रूप नहि रेखा ॥ हमहीं आप कबीर कहावा । हमहीं अपना श्राप लखावा ॥
जो कबीर को अंडरहिल के समान रामानुज के 'विशिष्टाद्वैतवादी सिद्धांत' का और फर्कुहर के समान निंबार्क के 'भेदाभेद' का समर्थक मानते हैं वे भ्रम के कारण कबीर के संपूर्ण विचारों पर समन्वित रूप से विचार नहीं करते। कबीर ने पूर्ण ब्रह्म का एक ही दृष्टि-कोण से विचार नहीं किया है। उसका निर्वचन करने के लिये सब दृष्टि-कोणों से विचार करना पड़ता है, परंतु अंत में सबका समन्वय किए बिना पूर्णावस्था का ज्ञान नहीं हो सकता। कबीर जैसे पूर्ण अद्वैतवादियों ने यही किया भी है। इसी से कबीर में एक साथ ही निंबार्क के भेदाभेद और रामानुज के विशिष्टाद्वैत का दर्शन हो जाता है। उनकी उक्तियों में से कोई भी वाद निकाला जा सकता है। परंतु स्वत: कबीर ने उनमें से किसी एक को नहीं अपनाया है। उन सबसे उन्होंने ऊपर उठने के लिये सोपान मात्र का काम लिया है। कबीर के सूक्ष्म दार्शनिक विचारों को पूर्ण रूप से समझने के लिये हमें उनकी एक ही दो उक्तियों पर नहीं बल्कि उनकी सब रचनाओं पर एक साथ विचार करना होगा। ऐसा करने से इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि वे पूर्ण अद्वैती थे । वस्तुतः पूर्ण अद्वैत में कबीर का इतना अटल विश्वास है कि वे उस परमतत्त्व को कोई नाम देना भी पसंद नहीं करते, क्योंकि ऐसा करने से नाम और नामी में द्वैतभाव हो जाने की आशंका हो जाती है
"उनको नाम कहन को नाहीं, दूजा धोखा हाई २ ।"
(.) क. ग्रं॰, पृ. २०१, ३३२ । (२)क. श०, भा० १, पृ० ६८ ।
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