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________________ ११४ नागरो प्रचारिणी पत्रिका जिसे कबीरपंथियों ने अनामी और शिवदयालजी ने राधास्वामी नाम से अभिहित किया, सत्य पुरुष से भी तीन लोक और ऊपर जा बैठा । बीच के पुरुषों का नाम अगम और अलख रखा गया । शिवदयालजी ने अनामी शब्द को राधास्वामी का विशेषण माना था। परंतु राधास्वामी संप्रदाय के अनुयायियों ने अनामी को एक अलग पुरुष मानकर राधास्वामी के नीचे रख दिया । उनका कहना है कि शिवदयालजी ने जान बूझकर अनामी पुरुष को गुप्त रखा था । इतना ही नहीं, शिवदयालजी ने सत्य को भी निर्गुण से चौथा न मानकर चार लोक ऊपर माना और इस प्रकार बढ़ी हुई जगह को भरने के लिये एक और लोक और पुरुष की कल्पना की जिनके नाम क्रमशः सोहंग लोक और सोहंग पुरुष रखे गए । इस प्रकार सबसे नवीन संत - ( राधास्वामी - ) साहित्य में हम निरंजन अथवा निर्गुण को उत्तरोत्तर उच्च पदवाले धनियों अथवा पुरुषों की श्रेणी के पाद पर पाते हैं । निरंजन के ऊपर क्रम से ब्रह्म, परब्रह्म, सोहंग ( सोहम् ) पुरुष, सत्य पुरुष, अलख पुरुष, अगम पुरुष और अनामी पुरुष हैं और सबके ऊपर राधास्वामी दयाल । इस संप्रदाय के अनुसार और धर्मों के लोग निरंजन अथवा उसके थे।ड़े ही ऊपर नीचे के किसी पुरुष की आराधना करते हैं । यदि संत संप्रदायों में यह पर प्रवृत्ति इसी प्रकार बढ़ती रही तो क्या आश्चर्य कि परमतत्त्व को कोई राधास्वामी से भी ऊपर ले जा रखे । परंतु दर्शन-बुद्धि से तो यह प्रावश्यक जान पड़ता है कि आवश्यकता से अधिक 'पर' ब्रह्म पर न जोड़े जायँ । इस दृष्टि से इस अतिशय 'पर' - प्रवृत्ति की कोई संगति नहीं बैठती । एक बार जब परमात्मा को सगुण निर्गुण दोनों से 'पर' बतला दिया तब एक के बाद एक और 'पर' जोड़ने से लाभ ही क्या हो सकता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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