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________________ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय ११३ निरंजन के बीच छः पुरुषों के लोक हैं। इन छः पुरुषों के नाम हैंसहज, ओकार, इच्छा, सोहम्, अचित्य और अक्षर । इन छः पुरुषों की सिद्धि के लिये एक नवीन सृष्टिविधान की कल्पना की गई जिसके अनुसार सत्य पुरुष ने क्रमशः छः ब्रह्मों और उनके लिये छः अंडों की रचना की। छठे अक्षर ब्रह्म की दृष्टि से छठा अंड फूटा तो उसमें से त्रैलोक्य का कर्ता निरंजन अपनी शक्ति ज्योति अथवा माया के साथ निकल पड़ा। परंतु इन नए नए बाह्यार्थवादी लोकों तथा उनके घनियों की कल्पना का क्रम यहीं पर न रुका, क्योंकि नाम तो शब्द मात्र हैं और परमात्मा की ओर संकेत मात्र कर सकते हैं। इन संकेतों को छोड़कर यदि उनका बाह्यार्थ लिया जाय तो उनका कोई भी पारमार्थिक मूल्य नहीं रह जाता। इस प्रकार हम परमात्मा को चाहे जिस नाम से पुकारें, वह उससे परे ही रहेगा; इसी लिये दर्शनशास्त्रों में उसे 'परात्पर' कहा है। परमात्मा, को परे से परे ले जा रखने की इस प्रवृत्ति के कारण आगे चलकर परमात्मा ‘सत्य पुरुष' से भी परे चला गया। परिणामतः परमात्मा, (१) प्रथम सुरति समरथ कियो घट में सहज उचार । ताते जामन दीनिया, सात करी विस्तार ॥... तब समरथ के श्रवण ते मूल सुरति भै सार । शब्द कला ताते भई, पाँच ब्रह्म अनुहार ॥ पांचा पांचौ अंड धरि, एक एक मा कीन्ह ।... ते अचिंत्य के प्रेम ते उपजे अचर सार ।... जब अचर छेनी द गै, दबी सुरति निरबान । श्याम बरन इक अंड है, सो जल में उतरान ॥... अक्षर दृष्टि से फूटिया, दस द्वारे कढ़ि बाप ॥ तेहि ते जोति निरंजनौ, प्रकटे रूपनिधान । -क० श०, पृ. ६५-६६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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