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नागरीप्रचारिणी पत्रिका चक्र से अलग ही एक चक्र मानी जाने लगी। कबीर ने भी ऐसा ही किया है। उन्होंने भँवरगुफा को लोक के अर्थ में प्रयुक्त नहीं किया है। ___ नानक ने सचखंड अर्थात् सत्यलोक को वैष्णवों के समान सर्वोच्च लोक माना है जहाँ निरंकार कर्ता पुरुष का वास है। इसके नीचे चार और लोक हैं जिनके नाम उन्होंने-नीचे से ऊपर का क्रम रखते हुए-यो दिए हैं-धरमखंड, सरम (शर्म ) खंड, ज्ञानखंड और करमखंड। सचखंड की यह भावना भी बाह्यार्थपरक ही है, परंतु ऐसा भी नहीं मालूम होता कि नानक ने सूक्ष्म भावना को सर्वथा त्याग ही दिया हो। उन्होंने अपने सत्यनाम करता पुरुख का वर्णन प्रायः वैसे ही शब्दों में किया जो कबीर के मुख में रखे जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि परमात्मा त्रिगुणात्मक त्रैलोक्य में व्याप्त है, परंतु है वह तीनों लोकों अथवा तोनों गुणों से बाहर, 'तीनि समावे चौथे बासा' । गुलाल उसे चौथे से भी ऊपर ले गए-"ब्रह्म-सरूप प्रखंडित पुरन, चौथे पद सों न्यारो३ ।" प्राणनाथ ने भी कहाहै
बाणी मेरे पीउ की, न्यारी जो संसार।
निराकार के पार थै तिन पारहु के पार ॥ इस प्रकार परब्रह्म क्रमश: एक के बाद एक पद ऊपर उठने लगा। कबीर के नाम से भी कुछ ऐसी कविताएँ प्रचलित हैं, जो वस्तुत: कबीर की नहीं हो सकतीं, जिनमें सत्य समर्थ और (.) बंकनालि के अंतरे, पछिम दिसा के बाट । नीझर झरै रस पीजिए, तहाँ भंवरगुफा के घाट रे ॥
-क. प्र०, पृ० ८८, ४ (२) "ग्रंथ", पृ० ४५। (३) सं० बा० सं०, भाग २, पृ० २०६। (४) प्रगट बानी, पृ० १, ना० प्र० स०, खोज-रिपोर्ट ।
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