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हिंदी काव्य में निगुण संप्रदाय १११ नीचे लिखी पंक्ति में भी इसी बात की ओर संकेत है
कहै कबीर हमारै गोव्यंद चौथे पद में जन का ज्यंद। कबीर तीन सनेही बहु मिले, चौथे मिले न कोय ।
सबै पियारे राम के, बैठे परवश होय ॥ अंतिम उद्धरण में तीन का अर्थ त्रैलोक्य भी लगाया जा सकता है। बिहारी दरिया ने अभय सत्यलोक को त्रैलोक्य के ऊपर बतलाया है। परमात्मा को त्रैलोक्य के परे मानना ठीक भी है। परंतु कबीर पंथ में इसका बिल्कुल ही बाह्यार्थ लगाया गया और सत्यपुरुष निर्गुण से दो लोक ऊपर माना गया। बीच के दो लोकों के नाम सुन्न और भंवरगुफा रखे गए और उनके धनियों ( अधिष्ठाताओं) के बिना किसी संगति के ब्रह्म और परब्रह्म । ___यहाँ पर यह कह देना आवश्यक है कि सुन्न बौद्धों के शून्य. वाद की प्रतिध्वनि है, जिसमें सत्तत्त्व शून्यमात्र माना जाता है; योग में वह सूक्ष्म आकाश तत्त्व का बोधक होकर त्रिकुटो के लिये भी प्रयुक्त होने लगा ! इसी प्रकार मुंडकोपनिषद् में परमात्मा का निवास गुहा में माना गया है। यह ज्ञानगुहा अथवा हृदयगुहा दोनों हो सकता है। हृदय में योग के एक कमल ( चक्र ) का भी स्थान है अतएव हृदयस्थ परमात्मा उसका भ्रमर हुआ और हृदय उस भ्रमर की गुहा। भंवरगुफा आगे चलकर अनाहत
(१)क. ग्रं॰, पृ० २१०, ३६५ । (२) तीन लोक के ऊपरे अभयलोक विस्तार । सत्त सुकृत परवाना पावै, पहुँचै जाय करार ॥
-सं. बा. सं०, भाग १, पृ. १२३ । (३) बृहच्च तदिव्यमनंतरूपं सूक्ष्माच तत्सूक्ष्मतरं विभाति । दृगसुदूरे तदिहांतिके च पश्यस्स्वि हैव निहितं गुहायाम् ॥
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