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नागरीप्रचारिणी पत्रिका दादू भी कहते हैं, “चर्म-दृष्टि से अनेक दिखाई देते हैं, आत्म-दृष्टि से एक, परंतु साक्षात् परिचय वा ब्रह्म-दृष्टि से होता है, जो इन दोनों के परे है।" फिर कहा है
दादू देखों दयाल को, बाहरि भीतरि सोइ ।
सब दिसि देखौं पीव कौं, दूसर नाही होइ ॥ भीखा भी कहते हैं
भीखा केवल एक है, किरतिम भया अनंत ।
एकै प्रातम सकल घट, यह गति जानहि संत ॥ हम यह देख चुके हैं कि परमात्मा भाव और अभाव दोनों प्रणालियों से अवर्णनीय है; क्योंकि वह भाव और प्रभाव दोनों
के परे है। परमात्मा की सगुण भावना ३. परात्पर
भावात्मक प्रणाली है, और निर्गुण भावना प्रभावात्मक। परंतु परमात्मा का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिये सगुण और निर्गुण दोनों के पर पहुंचना चाहिए। कबोर का अपने को निर्गुणी कहना नकारात्मक प्रणाली के अनुसरण मात्र की ओर संकेत करता है, जिसके साथ जिज्ञासु का ज्ञान-मार्ग में प्रवेश होता है। सूक्ष्म गुण तीन माने जाते हैं। इसलिये कबीर ने परमात्मा के सत्य स्वरूप को तीन गुणों से परे होने के कारण चौथा पद भी कहा है
राजस तामस सातिग तीन्यू, ये सब तेरी माया।
चौथे पद को जो जन चीन्हें तिनहिं परम पद पाया ॥ (१)चमदृष्टी देखे बहुत करि, भातमष्टी एक । ब्रह्मदृष्टि परिचय भया, (तब) दादू बैठा देख ॥
-बानी (ज्ञान-सागर), पृ० ४८ । (२) बानी, भाग १, पृ० ५३ । । (३) सं० बा० सं०, भाग १, पृ. २१३ । (४) क. ग्रं॰, पृ० ११०, १८४ ।
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