SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय १०७ कहने पर भी उस पर विशेषणों का आरोप करना-चाहे वह विशेषण 'निर्विशेष' ही क्यों न हो-असंगत है। निर्गुणियों को भी इस बात का अनुभव हुआ था। ब्रह्म के वर्णन में वाणी की व्यर्थता की घोषणा करके कबीर ने भाव ऋषि का साथ दिया। उन्होंने कहा-भाई बोलने की बात क्या कहते हो ? बोलने से तो तत्व ही नष्ट हो जाता है। __ परंतु जैसा नानक कहते हैं, जो लोग परमात्मा में एकतान भावना से लीन हो जाते हैं, वे चुप भी तो नहीं रह सकते। परमात्मा के यशोगान की भूख इंद्रियार्थों से थोड़े ही बुझ सकती है । प्रतएव वाणी का आधार लेना ही पड़ता है। बोलने से अधूरा सही, भगवद्विचार का प्रारंभ तो हो जाता है। बिना बोले वह भी नहीं हो सकता। इसी लिये नानक ने कहा-"जब बगि दुनिया रहिए नानक, किछु सुणिए किछु कहिए ।" परमात्मा यद्यपि 'नयन' और 'वयन' के अगोचर है फिर भी वह संतों के 'कानों' और 'कामों' का सार है। भगवचर्चा में सम्मिलित होना उनके जीवन का प्रधान सुख है। परमात्मा के गुणगान ही में वे जिह्वा की सार्थकता मानते हैं। बोलने की इसी आवश्यकता (1) बोलना का कहिए रे भाई । बोलत बोलत तत्त नसाई । -क. ग्रं॰, पृ० १०६, ६७ । (२) चुपै चुपि न होवई लाइ रहा लिवतार। भुखिया भूख न उतरी जेवना पुरिया भार ॥-'जपजी', २। (३) बिन बोले क्यों होइ विचारा ।-क० ग्रं, १०६, ६७ । (४) 'ग्रंथ'; पृ० ३५६ ।। (५) कहत सुनत सुख उपजै अरु परमारथ होय । नैना बैन अगोचरी स्रवणा करणी सार । बोलन के सुख कारणे कहिए सिरजनहार ॥ -वही, पृ० २३६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy