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हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय
१०१ नहीं अल्लाह का भय है।" प्रेम से प्रभावित होना सामी जाति का खभाव नहीं है, उनके ऊपर केवल भय का असर पड़ सकता था । __ परमेश्वर की इस अनंत शक्ति को निर्गुण पंथो अस्वीकार नहीं करते। परंतु उनके लिये परमेश्वर के स्वरूप का यह केवल एक गौण लक्षण है। परमेश्वर इस विश्व का कर्ता-धर्ता, नियंता, शासक
और अधिपति ही नहीं बल्कि व्यापक तत्त्व भी है। वह घट घट में, कण कण में, अणु-परमाणु में व्याप्त है और वही हममें सार वस्तु है । परमेश्वर परमेश्वर ही नहीं परमात्मा भी है। वह हमारे आत्मा का प्रात्मा है। मुसलमानी विश्वास और निर्गुण पंथो अनुभूति में जो अंतर है, उसे कबीर ने संक्षेप में इस तरह व्यक्त किया है
मुसलमान का एक खुदाई । कबीर का स्वामी रहा समाई २ ॥
दादू ने वेदांत के सर्वप्रिय दृष्टांत का आसरा लेकर कहा, दूध में घो की तरह परमात्मा विश्व में सर्वत्र व्याप्त है३ । नानक ने परमात्मा के सम्मुख निवेदन किया
"जेते जीन जंत जलि थलि माहीं
अली जत्र कत्र तू सरब जीना। गुरु परसादि राखिले जन कउ
हरिरस नानक झोलि पीना ॥"
(1) डिक्शनरी ऑव इस्लाम, पृ० ४०१ में मिस्टर स्टेनली लेनपोल के अवतरण के आधार पर। उलटे कामाओं में उनके शब्दों का यथार्थ अनुवाद है-"दि फियर रादर दैन दि लव प्राव गाँड इज़ दि रूपर टु इस्लाम।"
(२) ग्रंथ, पृ. ६२६ । क. ग्रं॰, पृ० २०.,३००। (३) घोव दूध में रमि रहा ब्यापक सब ही गैर ।
-बानी, भा० १, पृ० १२ (१) 'ग्रंथ', ६० । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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